Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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तिलोयपण्णत्ती
[१. २१३३
सीदाए दक्षिणए जिणभवणं भहसालवणमझे । मंदरपुम्वदिसाए पुग्वोदिदवण्णणाजुस ॥२१३३ सीदाणदिए तत्तो उत्तरतीरम्मि दक्खिणे तीरे । पुवोदिदकमजुत्ता पउमोत्तरणीलदिग्गइंदाओ ॥ २१३४
णवीर विसेसो एको सोमो णामेण चे?दे तेसुं । सोहम्मदस्स तहा वाहणदेओ जमो णाम ॥ २१३५ (मेरुगिरिपुवदक्षिणपच्छिमए उत्तरम्मि पत्तक । सीदासीदोदाए पंच दहा केइ इच्छंति ॥ २१३६ . ताण उवदेसेण य एकदहस्स दोसु तीरेखें । पण पण कंचणसेला पत्तेकं होंति णियमेणं ॥ २१३७
[पाठान्तरम् ।] मंदरगिरिंददक्खिणविभागगदभ६सालवेदीदो । दक्खिणभायम्मि पुढं णिसहस्स य उत्तरे भागे ॥ २१३८ विज्जप्पहपुज्वदिसा सोमणसादो य पच्छिमे भागे । पुव्वावरतीरेखें सीदोदे होदि देवकुरू ॥ २१३९ णिसहवणवेदिपासे तस्स य पुब्वावरेसु दीहत्तं । तेवण्णसहस्साणि जोयणमाणं विणिपिढें ॥ २१४० असहस्सा चउसयचउतीसा मेरुदक्खिणदिसाए । सिरिभद्दसालवेदियपासे तक्खेत्तदीहत्तं ॥ २१४१
८४३४। एक्करससहस्साणि पंचसया जोयणाणि बाणउदी। उणवीसहिदा दुकला तस्सुत्तरदक्खिणे रुंदो॥२१४२
११५९२ । २।
भद्रशालवनके मध्यमें सीताके दक्षिण और मन्दरकी पूर्वदिशामें पूर्वोक्त वर्णनासे सहित जिनभवन है ॥ २१३३॥
इसके आगे सीतानदीके उत्तर और दक्षिण किनारोंपर पूर्वोक्त क्रमसे युक्त पद्मोत्तर और नील नामक दिग्गजेन्द्र पर्वत स्थित हैं ॥ २१३४ ।।
यहां विशेषता एक यह हैं कि उन पर्वतोंपर सौधर्म इन्द्रके सोम और यम नामक वाहनदेव रहते हैं ॥ २१३५ ।।
कितने ही आचार्य मेरुपर्वतके पूर्व, दक्षिण, पश्चिम और उत्तर, इनमेंसे प्रत्येक दिशामें सीता तथा सीतोदानदीके पांच द्रहोंको स्वीकार करते हैं ।। २१३६ ॥
उनके उपदेशसे एक एक द्रहके दोनों किनारोंमेंसे प्रत्येक किनारेपर नियमसे पांच पांच कांचनशैल हैं ॥ २१३७ ॥
[ पाठान्तर।] मन्दरपर्वतके दक्षिणभागमें स्थित भद्रशालवेदीसे दक्षिण, निषधसे उत्तर, विद्युत्प्रभके पूर्व और सौमनसके पश्चिम भागमें सीतोदाके पूर्व-पश्चिम किनारोंपर देवकुरु है।।२१३८-२१३९॥
निषधपर्वतकी वनवेदीके पासमें उसकी पूर्व-पश्चिम लंबाई तिरेपन हजार योजनप्रमाण बतलाई गई है ॥ २१४०॥
___ मेरुकी दक्षिणदिशामें श्रीभद्रशालवेदीके पास उस क्षेत्रकी लंबाई आठ हजार चारसौ चौंतीस योजनमात्र है ॥ २१४१ ॥ ८४३४ ।
___ उसका विस्तार उत्तर-दक्षिणमें ग्यारह हजार पांचसौ बानबै योजन और उन्नीससे भाजित दो कलामात्र है ॥ २१४२ ॥ ११५९२ २ ।
१ द ब जुत्ता .
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