Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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३६२]
तिलोयपण्णत्ती
[४.१६७३
सिरिदेवीए होति ह देवा सामाणिया य तणुरक्खा । परिसत्तियाणीया पइण्णअभियोगकिब्बिसिया।। १६७३ ते सामाणियदेवा विविहंजणभूसणेहि कयसोहा । सुपसस्थविउलकाया चउस्सहस्सयपमाणा ॥ १६७४
४...। ईसाणसोममारुददिलाण भागेसु पउमउवरिम्मि । सामाणियाण भवणा होति सहस्साणि चत्तारि ॥ १६७५
सिरिदेवीतणुरक्खा देवा सोलससहस्सया ताणं । पुवादिसु पत्तेक चत्तारिसहस्सभवणाणि ॥ १६७६
१६०००। भभंतरपरिसाए भाइचो णाम सुरवरो होदि। बत्तीससहस्साणं देवाणं अहिवई धीरो ॥ १६७७ पउमद्दहपउमोवरि अग्गिदिसाए भवति भवणाई। बत्तीससहस्साई ताणं वरस्यणरइदाई ॥ १६७८
३२०००। पउमम्मि चंदणामो मज्झिमपरिसाए अहिवई देओ। चालीससहस्साणं सुराण बहुयाणसाणं ॥ १६७९
अडदालसहस्साँणं सुराण सामी समुग्गयपयाओ। बाहिरपरिसाए जदुणामो सेवेदि सिरिदेवि ॥ १६८०
४८०००।
श्रीदेवीके सामानिक, तनुरक्ष, तीनों प्रकारके पारिषद, अनीक, प्रकीर्णक, आभियोग्य और किल्बिषिक जातिके देव हैं ॥ १६७३ ॥
विविध प्रकारके अंजन और भूषणोंसे शोभायमान तथा सुप्रशस्त एवं विशाल कायवाले वे सामानिक देव चार हजारप्रमाण हैं ॥ १६७४ ॥ ४००० ।
ईशान, सोम ( उत्तर ) और वायव्य दिशाओंके भागोंमें पद्मोंके ऊपर उन सामानिक देवोंके चार हजार भवन हैं ॥ १६७५ ॥ ४००० ।
श्रीदेवीके तनुरक्षक देव सोलह हजार हैं । इनके पूर्वादिक दिशाओंमेंसे प्रत्येक दिशामें चार हजार भवन हैं ॥ १६७६ ॥ ४ ४ ४००० = १६०००।
अभ्यन्तर परिषझै बत्तीस हजार देवोंका अधिपति धीर आदित्य नामक उत्तम देव है ॥ १६७७ ॥
पद्मद्रहके कमलोंके ऊपर आग्नेय दिशामें उन देवोंके उत्तम रत्नोंसे रचित बत्तीस हजार भवन हैं ॥ १६७८ ॥ ३२००० ।
पद्मद्रहपर मध्यम परिषद्के बहुत यान और शस्त्रयुक्त (?) चालीस हजार देवोंका अधिपति चन्द्र नामक देव है ॥१६७९।।३२०००। (यहां भवनोंकी दिशा और संख्यासूचक गाथा त्रुटित प्रतीत होती है)
बाह्य परिषद्के अड़तालीस हजार देवोंका स्वामी प्रतापशाली जतु नामक देव श्रीदेवीकी सेवा करता है ।। १६८० ॥ ४८००० ।
१ द सामाणियतणुरक्खा. २ द ब विहंजण'. ३ द ब चउस्सद वि या पमाणाय. ४ द ब दहण , ५ दब सहस्साई. ६ द बहुसत्थाणं. ७ द ब सहस्साणिं. ८ दब जहदुणाणो.
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