Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 477
________________ ४१०] तिलोयपण्णत्ती. [४.२०७८ सत्तसया पण्णासा पत्तेक ताण मझविस्थारो।पंचसयजोयणाणं सिहरतले रुंदपरिमाणं ॥ २०७४ ७५० । ५००। एदाणं परिहीमो वित्थारे तिगुणिदम्मि अदिरित्तो । अवगाढो जमगाणं णियणियउच्छेहचउभागो । २०७१ जमकोवरि बहुमज्झे पत्तेकं होंति दिवपासादा । पणघणकोसा रुंदा तद्दगुणुच्छेहसंपण्णा ॥ २०८० १२५। २५०। उच्छेहबद्धवासा सव्वे तवणिजरजदरयणमया । धुवंतधयवदाया वरतोरणदाररमणिज्जा ॥ २०८१ १२५। जमकगिरीणं उवरि अवरे वि हवंति दिवपासादा । उच्छेहवासपहुदिसु उच्छण्णो ताण उवएसो ॥ २०८२ उबवणसंडेहि जुदा पोक्खरणीकूववाविभारम्मा । फुरिदवररयणदीवा ते पासादा विरायते ॥ २०८३ पन्वदसरिच्छणामा वितरदेवा वसंति एदेसुं। दसकोदंडुत्तुंगा पत्तेकं एकपल्लाऊ ॥ २००४ सामाणियतणुरक्खा सत्ताणीयाणि परिसतिदयं च । किब्बिसियभाभियोगा पडण्णया ताण होति पत्तेकं ॥ २०८५ सामाणियपहुदीणं पासादा कणयरजदरयणमया। तहेवीर्ण भवणा सोहंति हुणिरुवमायारा ॥ २००६ उन प्रत्येक पर्वतोंका मध्यविस्तार सातसौ पचास योजन और शिखरतलमें विस्तारका प्रमाण पांचसौ योजन है ॥ २०७८ ॥ ७५० । ५०० । इनकी परिधियां तिगुणे विस्तारसे अधिक हैं । यमकपर्वतोंकी गहराई अपनी उंचाईके चतुर्थ भागप्रमाण है ॥ २०७९ ॥ प्रत्येक यमकपर्वतके ऊपर बहुमध्यभागमें पांचके घन अर्थात् एकसौ पच्चीस कोस विस्तारसे सहित और इससे दूनी उंचाईसे संपन्न दिव्य प्रासाद हैं ॥ २०८० ॥ १२५। २५० । सुवर्ण, चांदी एवं रत्नोंसे निर्मित, फहराती हुई ध्वजा-पताकाओंसे संयुक्त और उत्तम तोरणद्वारोंसे रमणीय ये सब प्रासाद अपनी उंचाईके अर्धभागप्रमाण विस्तारसे सहित हैं ॥२०८१॥ १२५। यमकपर्वतोंके ऊपर और भी दिव्य प्रासाद हैं। उनकी उंचाई व विस्तारादिका उपदेश नष्ट हो गया है ॥ २०८२ ॥ __उपवनखण्डोंसे सहित, पुष्करिणी, कूप व वापिकाओंसे रमणीय, और प्रकाशमान उत्तम रत्नदीपकोंसे संयुक्त वे प्रासाद विराजमान हैं ।। २०८३ ॥ इन प्रासादोंमें पर्वतोंके सदृश नामवाले व्यन्तरदेव निवास करते हैं । इनमेंसे प्रत्येक दश धनुष ऊंचे आर एक पल्यप्रमाण आयुसे सहित हैं ॥ २०८४ ॥ ___ उनमेंसे प्रत्येकके सामानिक, तनुरक्ष, सप्तानीक, तीनों पारिषद, किल्बिषिक, आभियोग्य और प्रकीर्णक देव होते हैं ॥ २०८५ ।। सुवर्ण, चांदी एवं रत्नोंसे निर्मित सामानिकप्रभृति देवोंके प्रासाद और अनुपम आकारवाले उनकी देवियोंके भवन शोभायमान हैं ॥ २०८६ ॥ १दबदव्व. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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