Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 480
________________ -१. २११३ ] चउत्यो महाधियारो [४१३ .पुग्वं पिव वणसंडा मुले उवरिम्मि दिग्गयाणं पि । वरवेदीदारजुदा समतदो सुंदरा होति ॥ २१०५ एदाणं परिहीमो वासेणं तिगुणिदेण अधियायो। ताण उवरिम्मि दिग्वा पासादा कणयरयणमया ॥२१॥ पणघणकोसायामा तद्दलवासा हवंति पत्तेकं । सब्वे सरिसुच्छेहा वाण दिवगुणिदेणं ॥२१०७ १२५ । १२५ । ३७५। एदेखें भवणेसुं कीडेदि जमो नि वाहणो देवो । सकस्स विकुम्वंतो एरावदहस्थिरूवेणं ॥ २१०८ तत्तो सीदोदाए पच्छिमतीरे जिणिदपासादो। मंदरदक्षिणभागे तिहवणचूडामणीणामो ॥ २१०९ उच्छेहवासपहुदि पंडुगजिणणाहमंदिराहिंतो। मुहमंडवमधिठाणप्पहुदि च चउग्गुणं तस्स ॥२११० मंदरपच्छिमभागे सीदोदणदीए उत्तरे तीरे । चेट्टदि जिणिंदभवणं' पुच्वं पिव वण्णेहिं जुदं ॥ २१११ सीदोदवाहिणीए दक्खिणतीरम्मि भइसालवणे । चेटेदि कुमुदसेल उत्तरतीरे पलासगिरी ॥२११२ एदाओ वण्णणाओ सयलाओ दिग्गइंदसरिसाओ। णवरि विसेसो एसो वासो वरुणस्स उत्तरदस्स ॥२०१५ ___ इन दिग्गजपर्वतोंके ऊपर व मूलमें पहिलेके ही समान उत्तम वन-वेदीद्वारोंसे संयुक्त और सब ओर सुन्दर वनखण्ड हैं ॥ २१०५ ।। इनकी परिधियां तिगुणे विस्तारसे अधिक हैं । उन पर्वतोंके ऊपर सुवर्ण और रत्नमय दिव्य प्रासाद हैं ॥ २१०६ ॥ इन सबमें प्रत्येक प्रासाद पांचके घन अर्थात् एकसौ पच्चीस कोसप्रमाण लंबे, इससे आधे विस्तारसे सहित और डेढ़गुणे विस्तारके सदृश ऊंचे हैं ॥ २१०७ ॥ १२५ । १२५ ॥ २४॥ ___ इन भवनोंमें सौधर्म इन्द्रका यम नामक वाहनदेव क्रीड़ा किया करता है । यह देव ऐरावतहाथीके रूपसे विक्रिया करता है ॥ २१०८ ॥ इसके आगे मन्दरपर्वतके दक्षिण भागमें सीतोदानदीके पश्चिम किनारेपर त्रिभुवनचूडामणि नामक जिनेन्द्रप्रासाद है ॥ २१०९ ॥ ___उस जिनेन्द्रप्रासादकी उंचाई व विस्तारप्रभृति तथा मुखमण्डप व अधिष्ठानप्रभृति पाण्डुकवनके जिनेन्द्रमन्दिरोंसे चौगुणे हैं ॥ २११० ॥ मन्दरपर्वतके पश्चिम भागमें सीतोदानदीके उत्तर किनारेपर पूर्वके ही समान वर्णनोंसे युक्त जिनेन्द्रभवन स्थित है ॥ २१११ ॥ ___ भद्रशालवनमें सीतोदानदीके दक्षिण किनारेपर कुमुदशैल और उत्तर किनारेपर पलाशगिरि स्थित है ॥ २११२ ॥ ये सम्पूर्ण वर्णनायें दिग्गजेन्द्रपर्वतोंके सदृश हैं । विशेष केवल यह है कि यहां उत्तरेन्द्रके लोकपाल वरुणका निवास है ॥ २११३ ॥ १ द ब दिग्गदाणं. २ द ब पासादा. ३ द व जिणणाम'. ४ द ब मुहमंडलमदिवासं पहुंदि. ५ द जिणंदभवणं. ६ द ब कुणदिसेलं. ७ द ब एसो वरुणेसुं. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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