Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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३७८]
तिलोयपण्मत्ती
[१.१७९७
जस्थिच्छसि विक्खभं चूलियसिहराउ समवदिण्णाणं । तं पंचेहि विहत्तं चउजुत्तं तत्थ तव्वासं ॥ १७९७ तं मूले सगतीसं मज्झे पणुवीस जोयणाणं पि । उड्डे बारस अधिया परिही वेरुलियमइयाए ॥ १७९८
३७।२५। १२। जत्थिच्छसि विक्खभ मंदरसिहराउ समवदिण्णाणं । तं एक्कारसभजिदं सहस्ससहिद च तत्थ वित्थारं ॥ १७९९ जस्सि इच्छसि वासं उवरिं मूलाउ तेत्तियपदेसं । एक्कारसेहिं भजिदं भूवासे सोधिदम्मि तव्वासं ॥ १८०० एक्कारसे पदेसे एकपदेसा दु मूलदो हाणी । एदं पादकरंगुलकोसप्पहुदीहिं णादव्वं ॥ १८०१ हरिदालमैई परिही वेरुलियाण रयणवजमई । उड्डम्मि य पउममई तत्तो उवरिम्म पउमरायमई ।। १८०२ सोलससहस्सयाणि पंचसया जोयणाणि पत्तेकं । ताणं छप्परिहीणं मंदरसेलस्स परिमाणं ॥ १८०३
१६५०० । चूलिकाके शिखरसे नीचे उतरते हुए जितने योजनपर विष्कंभको जाननेकी इच्छा हो उतने योजनोंको पांचसे विभक्त करने पर जो लब्ध आवे उसमें चार अंक और जोड़ देनेपर वहांका विस्तार निकलता है ॥ १७९७ ॥
उदाहरण--चूलिकाशिखरसे नीचे २० योजनपर विष्कंभका प्रमाण२०५+ ४ = ८ योजने ।
वैडूर्यमणिमय उस शिखरकी परिधि मूलमें सैंतीस योजन, मध्यमें पच्चीस योजन और ऊपर बारह योजनसे अधिक है ॥ १७९८ ॥ ३७ । २५ । १२ ।
सुमेरुपर्वतके शिखरसे नीचे उतरते हुए जितने योजनपर उसके विष्कंभको जाननेकी इच्छा हो, उतने योजनोंमें ग्यारहका भाग देने पर जो लब्ध आवे उसमें एक हजार योजन और मिला देने पर वहांका विस्तार आजाता है ॥ १७९९ ॥
उदाहरण---शिखरसे नीचे ३३००० योजनपर विष्कंभका प्रमाण-- ३३००० ११ + १००० = ४००० योजन ।
मूलसे ऊपर जिस जगह मेरुके विस्तारको जाननेकी इच्छा हो, उतने प्रदेशमें ग्यारहका भाग देनेपर जो लब्ध आवे उसे भूविस्तारमेंसे घटा देने पर शेष वहांका विस्तार होता है ॥१८००॥
उदाहरण--६६००० योजनकी उंचाई पर विष्कंभका प्रमाण--- १०००० -- (६६००० ११) = ४००० योजन ।
मेरुके विस्तारमें मूलसे ऊपर ग्यारह प्रदेशोंपर एक प्रदेशकी हानि हुई है । इसीप्रकार पाद, हस्त, अंगुल और कोसादिककी उंचाईपर भी स्वयं जानना चाहिये ॥ १८०१ ॥
___इस पर्वतकी परिधि क्रमशः नीचेसे हरितालमयी, वैडूर्यमणिमयी, रत्न- (सर्वरत्न- ) मयी, वज्रमयी, इसके ऊपर पममयी, और इससे भी ऊपर पद्मरागमयी है ॥ १८०२ ॥
मन्दरपर्वतकी इन छह परिधियोंमेंसे प्रत्येक परिधिका प्रमाण सोलह हजार पांचसौ योजन मात्र है ॥ १८०३ ॥ १६५०० ।
१दब तप्पंचे विविहत्थं. २ दबमूलदा..३द बहरिदालमही.
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