Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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-४. १९२० ]
चउत्थो महाधियारो
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चउजोयणउच्छेहो उवरि पीढस्स कणयवरखंभा । विविहमणिणियरखचिदा चामरघंटापयारजुदा ॥ १९१२. सम्वेस भेसं महाधया विविहवण्णरमणिज्जा । णामेण महिंदधया छत्तत्तयसिहरसोहिल्ला ॥ १९१३ पुरदो महाधयाण मकरप्पमुहेहि मुक्कसलिलाओ । चत्तारो वावीओ कमलुप्पलकुमुदछण्णाओ॥ १९१४ । पण्णासकोसउदया कमसो पणुवीस रुंददीहत्ता । दस कोसा अवगाढा वावीओ वेदियादिजुत्ताओ ॥ १९१५
"को ५० । १०० । गा १०
(वावीणं बहुमज्झे चेदि एक्को जिणिदपासादो । विष्फुरिदरयणकिरणो कि बहुसो सो णिरुवमाणो ॥ १९१३) तत्तो दहाउ पुरदो पुव्वुत्तरदक्खिणेसु भागेसुं। पासादा रयणमया देवाणं कीडणा होति ॥ १९१७ - पण्णासकोसउदया कमसो पणुवीस रुंददीहत्ता । धूवघडेहिं जुत्ता ते णिलया विविहवण्णधरा ॥ १९१८
को ५० । २५।२५। वरवेदियाहिं रम्मा वरकंचणतोरणेहिं परियरिया । वरवजणीलमरगयणिम्मिदभित्तीहि सोहंते ॥ १९१९ : ताण भवणाण पुरदो तेत्तियमाणेण दोणि पासादा । धुव्वंतधयवदाया फुरंतवररयणकिरणोहा ॥ १९२०
५० । २५ । २५।
पीठके ऊपर विविध प्रकारके मणिसमूहसे खचित और अनेक प्रकारके चमर व घंटाओंसे युक्त चार योजन ऊंचे सुवर्णमय खम्भे हैं ॥ १९१२ ॥
सब खम्भोंके ऊपर अनेक प्रकारके वर्षों से रमणीय और शिखररूप तीन छत्रोंसे सुशोभित महेन्द्र नामक महाध्वजायें हैं ॥ १९१३ ॥
___महाध्वजाओंके आगे मगर आदि जलजन्तुओंसे रहित जलवाली और कमल, उत्पल व कुमुदोंसे व्याप्त चार वापिकायें हैं ॥ १९१४ ॥
वेदिकादिसे सहित वापिकायें प्रत्येक पचास कोसप्रमाण विस्तारसे युक्त, इससे दुगुणी अर्थात् सौ कोस लम्बी और दश कोस गहरी हैं ॥ १९१५ ॥ को. ५० । १०० । ग. १० ।
वापियोंके बहुमध्यभागमें प्रकाशमान रत्नकिरणोंसे सहित एक जिनेन्द्रप्रासाद स्थित है। बहुत कथनसे क्या, वह जिनेन्द्रप्रासाद निरूपम है ॥ १९१६॥ ....... अनन्तर वापियोंके आगे पूर्व, उत्तर और दक्षिण भागोंमें देवोंके रत्नमय क्रीडाभवन हैं ॥ १९१७ ॥ व विविध वर्णोंको धारण करनेवाले वे भवन पचास कोस ऊंचे, क्रमसे पच्चीस कोस विस्तृत और पच्चीस ही कोस लम्बे तथा धूपघटोंसे संयुक्त हैं ॥ १९१८ ॥ को. ५० । २५।२५।।
उत्तम वेदिकाओंसे रमणीय और उत्तम सुवर्णमय तोरणोंसे युक्त वे भवन उत्कृष्ट वज्र, नीलमणि और मरकत मणियोंसे निर्मित भित्तियोंसे शोभायमान हैं ॥ १९१९ ॥
उन भवनोंके आगे इतने ही प्रमाणसे संयुक्त, फहराती हुई ध्वजा-पताकाओंसे सहित और प्रकाशमान उत्तम रत्नोंके किरणसमूहसे सुशोभित दो प्रासाद हैं ॥ १९२० ॥ ५० । २५ । २५।
१ द ब °उच्छेहो. २ द ब महादहाणं.
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