Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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-४.१६७२ ]
घउत्थो महाधियारो
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उदयं भूमुहवास मज्झं पणवीस तत्तियं दलिदं । मुहभूमिजुदस्सद्ध पत्तेकं जोयणाणि कूडाणं ॥ १६६६
२५ । २५ । २५। ७५।
दहमझे अरविंदयणालं बादालकोसमुब्बिद्धं । इगिकोसं बादलं तस्स मुणालं ति रजदमयं ॥ १६६७
को ४२, बा को । कंदो यरिटरयणं णालो वेरुलियरयणणिम्मविदो। तस्सुवरि दरवियसियपउमं चउकोसमुब्बिद्धं ॥ १६६८
को ४ा. चउकोसरुंदमझं अंते दोकोसमहव चउकोसा। पत्तेकं इगिकोसं उस्सेदायामकणिया तस्स ॥ १६६९
को.४।२। को ४।को । अहवा दोदो कोसा एक्कारसहस्सपत्तसंजुत्ता। तकणिकाय उवरि वेरुलियकवाडसंजुत्तो ॥ १६७०
को २ को २।। कूडागारमहारिभवणो वरफलिहस्यणणिम्मविदो। आयामवासतुंगा कोस कोसद्धतिचरणा कमसो ॥ १६७१
को १।१।३।
(तस्सि सिरियादेवी भवणे पलिदोवमप्पमाणाऊ । दसै चावाणि तुंगा सोहम्मिदस्स सहदेवी ॥ १६७२)
- उन कूटोंमेंसे प्रत्येक कूटकी उंचाई पच्चीस योजन, भूविस्तार भी इतना अर्थात् पच्चीस योजन, मुखविस्तार पच्चीस योजनके अर्धभागप्रमाण और मध्यविस्तार भूमि तथा मुखके जोड़का अर्धभागमात्र है ॥ १६६६ ॥ २५ । २५ । २५ । १५ ।
___तालाबके मध्यमें ब्यालीस कोस ऊंचा और एक कोस मोटा कमलका नाल है। इसका मृणाल रजतमय और तीन कोस बाहल्यसे युक्त है ॥ १६६७ ।। उत्सेध को. ४२, बा. को. १ ।
उस कमलका कन्द अरिष्टरत्नमय और नाल वैडूर्यमणिसे निर्मित है । इसके ऊपर चार कोस ऊंचा किंचित् विकसित पद्म है ॥ १६६८ ॥
__उसके मध्यमें चार कोस और अन्तमें दो अथवा चार कोस विस्तार है। उसकी कर्णिकाकी उंचाई और आयाममेंसे प्रत्येक एक कोसमात्र है ॥ १६६९॥ को. ४ । २ । ४ । को. १ ।
___ अथवा, कर्णिकाकी उंचाई और लंबाई दो दो कोसमात्र है । यह कमलकर्णिका ग्यारह हजार पत्तोंसे संयुक्त है । इस कर्णिकाके ऊपर वैडूर्यमणिमय कपाटोंसे संयुक्त और उत्तम स्फटिकमणिसे निर्मित कूटागारोंमें श्रेष्ठ भवन है । इसकी लम्बाई एक कोस, विस्तार अर्ध कोसप्रमाण और उंचाई एक कोसके चार भागोंमेंसे तीन भागमात्र है ॥ १६७०-१६७१ ॥
___ को १।३। । इस भवनमें एक पल्योपमप्रमाण आयुकी धारक और दश धनुष ऊंची श्री नामक सौधर्म इन्द्रकी सहदेवी निवास करती है ॥ १६७२ ॥
१ दब कंदा. २ द ब तकणिकया. ३ द ब कूडागारामहरिह. ४ द ब तस्सिरिया सिरिदेवी. ५ द ब जस हेवाणिं.
TP46.
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