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________________ -४.१६७२ ] घउत्थो महाधियारो [ ३६१ उदयं भूमुहवास मज्झं पणवीस तत्तियं दलिदं । मुहभूमिजुदस्सद्ध पत्तेकं जोयणाणि कूडाणं ॥ १६६६ २५ । २५ । २५। ७५। दहमझे अरविंदयणालं बादालकोसमुब्बिद्धं । इगिकोसं बादलं तस्स मुणालं ति रजदमयं ॥ १६६७ को ४२, बा को । कंदो यरिटरयणं णालो वेरुलियरयणणिम्मविदो। तस्सुवरि दरवियसियपउमं चउकोसमुब्बिद्धं ॥ १६६८ को ४ा. चउकोसरुंदमझं अंते दोकोसमहव चउकोसा। पत्तेकं इगिकोसं उस्सेदायामकणिया तस्स ॥ १६६९ को.४।२। को ४।को । अहवा दोदो कोसा एक्कारसहस्सपत्तसंजुत्ता। तकणिकाय उवरि वेरुलियकवाडसंजुत्तो ॥ १६७० को २ को २।। कूडागारमहारिभवणो वरफलिहस्यणणिम्मविदो। आयामवासतुंगा कोस कोसद्धतिचरणा कमसो ॥ १६७१ को १।१।३। (तस्सि सिरियादेवी भवणे पलिदोवमप्पमाणाऊ । दसै चावाणि तुंगा सोहम्मिदस्स सहदेवी ॥ १६७२) - उन कूटोंमेंसे प्रत्येक कूटकी उंचाई पच्चीस योजन, भूविस्तार भी इतना अर्थात् पच्चीस योजन, मुखविस्तार पच्चीस योजनके अर्धभागप्रमाण और मध्यविस्तार भूमि तथा मुखके जोड़का अर्धभागमात्र है ॥ १६६६ ॥ २५ । २५ । २५ । १५ । ___तालाबके मध्यमें ब्यालीस कोस ऊंचा और एक कोस मोटा कमलका नाल है। इसका मृणाल रजतमय और तीन कोस बाहल्यसे युक्त है ॥ १६६७ ।। उत्सेध को. ४२, बा. को. १ । उस कमलका कन्द अरिष्टरत्नमय और नाल वैडूर्यमणिसे निर्मित है । इसके ऊपर चार कोस ऊंचा किंचित् विकसित पद्म है ॥ १६६८ ॥ __उसके मध्यमें चार कोस और अन्तमें दो अथवा चार कोस विस्तार है। उसकी कर्णिकाकी उंचाई और आयाममेंसे प्रत्येक एक कोसमात्र है ॥ १६६९॥ को. ४ । २ । ४ । को. १ । ___ अथवा, कर्णिकाकी उंचाई और लंबाई दो दो कोसमात्र है । यह कमलकर्णिका ग्यारह हजार पत्तोंसे संयुक्त है । इस कर्णिकाके ऊपर वैडूर्यमणिमय कपाटोंसे संयुक्त और उत्तम स्फटिकमणिसे निर्मित कूटागारोंमें श्रेष्ठ भवन है । इसकी लम्बाई एक कोस, विस्तार अर्ध कोसप्रमाण और उंचाई एक कोसके चार भागोंमेंसे तीन भागमात्र है ॥ १६७०-१६७१ ॥ ___ को १।३। । इस भवनमें एक पल्योपमप्रमाण आयुकी धारक और दश धनुष ऊंची श्री नामक सौधर्म इन्द्रकी सहदेवी निवास करती है ॥ १६७२ ॥ १ दब कंदा. २ द ब तकणिकया. ३ द ब कूडागारामहरिह. ४ द ब तस्सिरिया सिरिदेवी. ५ द ब जस हेवाणिं. TP46. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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