Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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-४.१६३७ ]
चउत्थो महाधियारो
[३५७
-सिद्धहिमवंतकूडा भरहइलागंगकूडसिरिणामारोहीदासा सिंधू सुरहेमवदं च वेसमणं॥ १६३२ . . उदयं भूमुहवासं मझं पणुवीस तत्तियं दलिदं । मुहभूमिजुदस्सर्दू पत्तेकं जोयणाणि कूडाणं ।। १६३३
२५। २५।२५।१८।को ।
एक्कारस पुवादी समवहा वेदिएहिं रमणिज्जा। वेंतरपासादजुदा पुब्वे कूडम्मि जिणभवणं ॥ १६३४ आयामो पण्णासं वित्थारो तहलं च जोयणया। पणहत्तरिदलमुदो तिहारजुदस्स जिणणिकेदस्स ॥१६३५
५० ।२५। ७५।३।
पुव्वमुहदारउदओ जोयणया अट्ठ तद्दलं रुदं । रुंदसमं तु पवेसं ताणद्धं दक्खिणुत्तरदुवारे ॥ १६३६
८।४।४।४।२।२। अट्टेव य दीहत्तं दीहाउभाग तत्थ वित्थारं । चउजोयणउच्छेहो देवच्छंदो जिणणिवासे ॥ १६३७
सिद्ध, हिमवान् , भरत, इला, गंगा, श्री, रोहितास्या, सिन्धु, सुरा, हैमवत और वैश्रवण, इसप्रकार ये ग्यारह उस पर्वतके ऊपर कूट हैं ॥ १६३२ ॥
इनमें से प्रत्येक कूटकी उंचाई पच्चीस योजन, भूविस्तार भी इतना अर्थात् पच्चीस योजन, मुखविस्तार पच्चीसका आधा अर्थात् साढ़े बारह योजन और मध्यविस्तार भूमि एवं मुखके जोड़का अर्धभागमात्र है ॥ १६३३ ॥
उत्सेध यो. २५ । भूव्यास २५। मुखव्यास २५ । मध्यव्यास ५३ + २५ : २ = यो. १८, को. ३।
पूर्वादिक्रमसे ये ग्यारह कूट समान गोल, वेदियोंसे रमणीय और व्यन्तरोंके भवनोंसे संयुक्त हैं । इनमेसे पूर्व कूटपर जिन भवन है ॥ १६३४ ॥
__ तीन द्वारोंसे संयुक्त इस जिन भवनकी लम्बाई पचास योजन, विस्तार इसका आधा अर्थात् पच्चीस योजन और उंचाई पचत्तर योजनके अर्धभागप्रमाण अर्थात् साढ़े सैंतीस योजन है ॥ १६३५ ॥ आयाम ५० । विस्तार २५ । उत्सेध ५५ । द्वार ३ ।
उपर्युक्त तीन द्वारोंमेंसे पूर्वमुख द्वारकी उंचाई आठ योजन, विस्तार इससे आधा अर्थात् चार योजन, और विस्तारके समान प्रवेश भी चार योजनमात्र है । शेष दक्षिण और उत्तरद्वारकी लम्बाई आदि पूर्वद्वारसे आधी है ॥ १६३६ ॥ पूर्वमुखद्वार-उत्सेध ८ । विस्तार ४ । प्रवेश ४ । द. उ. द्वार-उत्सेध ४ । विस्तार २ । प्रवेश २ ।
जिनभवनमें आठ योजन लंबा तथा लंबाईके चतुर्थभागमात्र विस्तारसे संयुक्त और चार योजन ऊंचा ऐसा देवच्छंद है ॥ १६३७ ॥
१ब सिरियामागा. २दब देवच्छंदा.
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