Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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-४. १००७]
चउत्थो महाधियारो
सयलागमपारगया सुदकेवलिणामसुप्पसिद्धा जे । एदाण बुद्धिरिद्धी चोदसपुग्वि ति णामेण ॥ १०॥
।चोद्दसपुवित्तं गदं । णइमित्तिका य रिद्धी णभभउमंगसराइ वेंजणयं । लक्खणचिण्हं सउणं अट्ठवियप्पेहि वित्थरिदं ॥ १००२ रविससिगहपहुदीणं उदयत्थमणादिआई दट्टणं । खीणत्तं दुक्खसुहं जं जाणइ तं हि णहणिमित्तं ॥ १००३
। णहणिमित्तं गदं । घणसुसिरणिद्धलुक्खप्पहुदिगुणे भाविदूण भूमीए । जं जाणइ खयवद्धिं तम्मयसैकणयरजदपमुहाणं ॥ १०.४ दिसिविदिसअंतरेसुं चउरंगबलं ठिदं च दट्टणं । जं जाणइ जयमजयं तं भउमणिमित्तमुद्दिष्टुं ॥ १००५
। भउमणिमित्तं गदं । वातादिप्पगिदीओ रुहिरप्पहदिस्सहावसत्ताई। णिण्णाण उण्णयाणं अंगोवंगाण दंसणा पासा ॥१००६ णरतिरियाण जं जाणइ दुक्खसोक्खमरणाई । कालत्तयणिप्पण्णं अंगणिमित्तं पसिद्धं तु ॥१००७)
। अंगणिमित्तं गदं ।
जो महर्षि सम्पूर्ण आगमके पारंगत हैं और श्रुतकेवली नामसे सुप्रसिद्ध हैं उनके चौदहपूर्वी नामक बुद्धिऋद्धि होती है ॥ १००१ ॥
चौदहपूर्वित्वऋद्धि समाप्त हुई । नैमित्तिक ऋद्धि नभ, भौम, अंग, स्वर, व्यंजन, लक्षण, चिह्न ( छिन्न ? ) और स्वप्न इन आठ भेदोंसे विस्तृत है ॥ १००२ ॥
सूर्य, चन्द्र और ग्रह इत्यादिकके उदय व अस्तमन आदिकोंको देखकर जो क्षीणता और दुखसुखका जानना है, वह नभनिमित्त है ॥ १००३ ।।
नभनिमित्त समाप्त हुआ। पृथिवीके धन ( सांद्रता), सुषिर (पोलापन), स्निग्धता और रूक्षताप्रभृति गुणोंको विचार कर जो तांबा, लोहा,सुवर्ण और चांदी आदिक धातुओंकी हानि-वृद्धिको तथा दिशा-विदिशाओंके अन्तरालमें स्थित चतुरंग बलको देखकर जो जय-पराजयको भी जानना है, इसे भौमनिमित्त कहा गया है ॥ १००४-१००५ ॥
भौमनिमित्त समाप्त हुआ। ___ मनुष्य और तिर्यंचोंके निम्न व उन्नत अंग-उपांगोंके दर्शन व स्पर्शसे वातादि तीन प्रकृतियों और रुधिरादि सात स्वभावों ( धातुओं ) को देखकर तीनों कालोंमें उत्पन्न होनेवाले सुख, दुख या मरणादिको जानना, यह अंगनिमित्त नामसे प्रसिद्ध है ॥ १००६-१००७ ।।
अंगनिमित्त समाप्त हुआ ।
१दब पुवित्ति. २ दब°मणादिआदि. ३ द ब तमयग, ४ द बप्परिदीओ. ५ द ब सत्तेई. ६ द ब तिण्हाणउण्हयाणं. ७द व पासं.
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