Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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२८६] तिलोयपण्णती
[ १. १०९१(जीए चउधणुमाणे समचउरसालयम्मि णरतिरिया । मंति यसंखेजा सा अक्खीणमहालया रिती ॥ १.९१)
।एवं खेतरिद्धी सम्मत्ता।
एवं चउसटिरिद्धी सम्मत्ता । एत्तो उवरि रिसिसंखं भणिस्सामि- . चउसीदिसहस्साणि रिसिप्पमाण हुवेदि उसहजिणे । इगि-दु-तिलक्खा कमसो भजियजिणे संभवम्मि गंदणए॥१०९२
उस ८४०००। भजि १०००००। संभव २०००००। अभि ३०००००। वीससहस्सजुदाई लक्खाई तिणि सुमहदेवम्मि। तीससहस्सजुदाणि पउमपहे तिणि लक्खाणि ॥ १.१३
सुमह ३२००००। पउम ३३००००। तिणि सुपासे चंदप्पहदेवे दोणि अद्धसंजुत्ता । सुविहिजिणिदम्मि दुवे सीयलणाहम्मि इगिलक्वं॥१.९५
सुपास ३०.... । चंद २५००००। पुप्फ २..... । सीय १०....।
___ जिस ऋद्धिसे समचतुष्कोण चार धनुषप्रमाण क्षेत्रमें असंख्यात मनुष्य-तियंच समाजाते हैं, वह अक्षीणमहालयऋद्धि है ॥ १०९१ ॥
इसप्रकार क्षेत्रऋद्धि समाप्त हुई। इसप्रकार चौंसठ ऋद्धियोंका वर्णन समाप्त हुआ। यहांसे आगे अब ऋषियोंकी संख्याका कथन किया जाता है
भगवान् ऋषभनाथ तीर्थकरके समयमें ऋषियोंका प्रमाण चौरासी हजार और अजितनाथ, सम्भवनाथ एवं अभिनन्दननाथ तीर्थकरके वह क्रमसे एक लाख, दो लाख और तीन लाख था ॥ १०९२ ॥ ऋषभ ८४००० । अजित १००००० । संभव २००००० । अभिनन्दन ३०००००।
सुमतिनाथ तीर्थकरके समयमें ऋषियोंका प्रमाण तीन लाख बीस हजार और पद्मप्रभके समयमें वह तीन लाख तीस हजार था ॥ १०९३ ॥
सुमति ३२०००० । पद्म ३३०००० । सुपार्श्वनाथ खामीके समयमें ऋषियोंकी संख्या तीन लाख, चन्द्रप्रभ जिनेन्द्रके अढ़ाई लाख, सुविधिनाथ तीर्थकरके दो लाख और शीतलनाथके एक लाखप्रमाण थी ॥ १०९४ ॥
सुपार्श्व ३००००० । चन्द्रप्रभ २५०००० । पुष्पदन्त २००००० । शीतल १०००००।
१ब तत्तो.
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