Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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-१. १५७२ ]
चउत्यो महाधियारो
[३४९
आऊ तेजो बुद्धी बाहुबलं तह य देहउच्छेहो । खंतिधिदिप्पहुदीओ कालसहावेण वति ॥ १५६५ एवं वोलीणेसुं इगिवीससहस्ससंखवासेसुं । पूरेदि भरहखेत्ते कालो अदिदुस्समो णाम ॥ १५६६
। भदिदुस्सम समत्तं । ताहे दुस्समकालो पविसदि तस्सि च मणुवतिरियाणं । आहारो पुष्वं चिर्य वीससहस्सावधि जाव ॥ १५६७
२००००। तस्स पढमप्पवेसे वीसं वासाणि होइ परमाऊ । उदओ य तिणि हत्था आउठहत्या चवंति परे ॥ १५६८
२०।३। ।
वाससहस्से सेसे उप्पत्ती कुलकराण भरहम्मि । अथ चोइसाण ताणं कमेण णामाणि वोच्छामि ॥ १५६९
कणो कणयप्पहकणयरायकणयद्धजा कणयपुंखो।
णलिणो णलिणप्पहणलिणरायणलिणद्धजा णलिण'खो ॥ १५७० पउमपहपउमराजा पउमद्धयपउमपुखणामा य । आदिमकुलकरउदओ चउ हत्था अंतिमस्स सत्तेव ॥ १५७१ सेसाणं उस्सेहे संपदि अम्हाण णस्थि उवदेसो। कुलकरपहुदी णामा एदाणं होति गुणणामा ॥ १५७२
आयु, तेज, बुद्धि, बाहुबल, देहकी उंचाई, क्षमा तथा धृति (धैर्य ) इत्यादि सब कालस्वभावसे उत्तरोत्तर बढ़ते जाते हैं ॥ १५६५ ॥
इसप्रकार इक्कीस हजार संख्याप्रमाण वर्षोंके बीत जानेपर भरतक्षेत्रमें अतिदुष्षमा नामक काल पूर्ण होता है ॥ १५६६ ॥
अतिदुष्षमा काल समाप्त हुआ। तब दुष्षमाकालका प्रवेश होता है। इस कालमें मनुष्य-तिर्यञ्चोंका आहार बीस हजार वर्ष तक पहिलेके ही समान रहता है ॥ १५६७ ॥ २००००।
इस कालके प्रथम प्रवेशमें उत्कृष्ट आयु बीस वर्ष और उंचाई तीन हाथप्रमाण होती है। दूसरे आचार्य उंचाई साढ़े तीन हाथप्रमाण कहते हैं ।। १५६८ ॥ आयु २० । उत्सेध ३।३।
____ इस कालमें एक हजार वर्षों के शेष रहने पर भरतक्षेत्रमें चौदह कुलकरोंकी उत्पत्ति होने लगती है। अब क्रमसे उन कुलकरोंके नामोंको कहता हूं ॥ १५६९ ॥
कनक, कनकप्रभ, कनकरौज, कनकॅध्वज, कनकपुंख (कनकपुंगव), नलिन, नलिनप्रंभ, नलिनराज, नलिनध्यंज, नलिनपुंखे (नलिनपुंगव), पद्मप्रभ, पद्मराज, पद्मध्वज, और पद्मपुंख (पद्मपुंगव), ये क्रमसे उन चौदह कुलकरोंके नाम हैं। इनमेंसे प्रथम कुलकरकी उंचाई चार हाथ और अन्तिम कुलकरकी उंचाई सात हाथ होती है ।। १५७०-१५७१ ॥ ४ । ७।
शेष कुलकरोंकी उंचाईके विषयमें हमारे पास इस समय उपदेश नहीं है । इनके जो कुलकरप्रभृति नाम हैं, वे गुणनाम अर्थात् सार्थक हैं ॥ १५७२ ।।
१ द ब पुव्वच्चिय. २ द ब आउट्ठहत्या. ३ द ब वोलीणो. ४ द ब णलिणप्पह णराय. ५ द ब उस्सेहो.
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