Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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तिलोयपण्णत्ती
[ ४. १५५८
अहदुस्समकाल २१००० | दु २१००० । दुसमसुसम सा १०००००००००००००० रिण वास ४२००० । सा २०००००००००००००० । सा ३०००००००००००००० । सु सा ४०००००००
०००००००।
पोक्रमेघा सलिलं वरिसंति दिणाणि सत्त सुहजणणं । वज्जग्गिणिए दड्ढा भूमी सयला वि सीयला होदि ॥ १५५८ वरिसंति खीरमेघा खीरजलं तेत्तियाणि दिवसाणिं । खीरजलेहिं भरिदा सच्छाया होदि सा भूमी ॥ १५५९ तत्तो अमिदपयोदा अमिदं वरिसंति सत्त दिवसाणिं । अमिदेणं सित्ताए महिए जायंति वैल्लिगोम्मादी ॥ १५६० ताधे रसजलवाहा दिव्वरसं पवरिसंति सत्तदिणे । दिव्वरसेणा उण्णा रसवंता होंति ते सव्वे ॥ १५६१ विविहरसोसहिभरिदा भूमी सुस्सादपरिणदा होदि । तत्तो सीयलगंध णादित्तों णिस्सरंति णरतिरिया ॥ १५६२ फलमूलदलप्पहुर्दि छुहिदा खादति मत्तपहुदीणं । जग्गा गोधम्मपरा णरतिरिया वणपएसेसुं ॥ १५६३ तक्कालपढमभाए आऊ पण्णरस सोलस समा वा । उच्छेहो इगिहत्थं वर्द्धते भाउपहुदीणिं ॥ १५६४
अतिदुष्षमा २१००० वर्ष । दुष्षमा २१००० वर्ष । दुष्षमसुषमा सागर १०००००- वर्ष ४२००० | सु. दु. सा. २०००००००००००००० । सु. सा. ३००००००००००००००। सु. सु. सा. उत्सर्पिणीकालके प्रारम्भमें पुष्कर मेघ सात दिन तक सुखोत्पादक जलको बरसाते हैं, जिससे वज्राग्निसे जली हुई सम्पूर्ण पृथिवी शीतल हो जाती है || १५५८ ॥
४०००००००००००००० |
क्षीरमेघ उतने ही दिन तक क्षीरजलकी वर्षा करते हैं । इसप्रकार क्षीरजलसे भरी हुई यह पृथिवी उत्तम कान्तियुक्त हो जाती है | १५५९ ॥
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इसके पश्चात् सात दिन तक अमृतमेघ अमृतकी वर्षा करते हैं । इसप्रकार अमृत से अभिषिक्त भूमिपर लता, गुल्म इत्यादि उगने लगते हैं ॥ १५६० ॥ करते हैं । इस दिव्य रससे परिपूर्ण
उस समय रसमेघ सात दिन तक दिव्य रसकी वर्षा वे सब रसवाले हो जाते हैं ॥ १५६१ ॥
विविध रसपूर्ण औषधियों से भरी हुई भूमि सुस्वादपरिणत हो जाती है। पश्चात् शीतलगंध को ग्रहणकर वे मनुष्य और तिर्यंच गुफाओंसे बाहर निकल आते हैं ।। १५६२ ।।
उस समय मनुष्य और तिर्यंच नग्न रहकर गोधर्मपरायण अर्थात् पशुओं जैसा आचरण करते हुए क्षुधित होकर वनप्रदेशों में मत्त (धतूरा ) आदि वृक्षोंके फल, मूल एवं पत्ते आदिको खाते
१५६३ ॥
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उस कालके प्रथम भागमें आयु पन्द्रह अथवा सोलह वर्ष और उंचाई एक हाथ प्रमाण
होती है । इसके आगे वे आयु आदि बढ़ती ही जाती हैं ॥ १५६४ ॥
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१ लि. २ दबणादित्ते ३ द ब छुदिदं.
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