Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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-४. १५९२ ]
उत्थो महाधियारो
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आदिमजिणउदयाऊ सगहत्था सोलसुत्तरं च सदं । चरिमस्स पुञ्चकोडी भाऊ पणसयधणूणि उस्सेहो ॥१५८२ ७ । ११६ । पु को १ । ५०० ।
उच्छेहा ऊपहृदिसु सेसाणं णत्थि अम्ह उवएसो । एदे तित्थयर जिणा तदियभवे तिभुवणस्स खोभकरं ॥। १५८३ तित्थयरणामकम्मं बंधंते ताण ते इमे णामा । सेणिगसुपासणामा उदकेपोट्ठिलकदसूया ॥ १५८४ खत्तियैपाविलसंखा य णंदसुनंदा ससंकसेवगया । पेमगतोरणरेवद किन्हौ सिरिभगलिविगलिणामा य ॥ १५८५ दीवायणमाणवका णारदणामा सुरुवदत्तो य । सच्चइपुत्तो चरिमो गरिंदवंसम्मि ते जादा || १५८६ तित्थयराणं काले चक्कहरा होंति ताण णामाई । भरहो अ दिग्धदंतो मुत्तरदंतो य गूढदंतो य ।। १५८७ सिरिसेणो सिरिभूदी सिरिकंतो पउमणाममहपउमा । तह चित्तवाहणो विमलवाहणो रिट्ठसेणणामा य ॥। १५८८ चंदो' य महाचंदो चंदधरो चंदसीहवर चंदौ । हरिचंदो सिरिचंदो सुपुण्णचंदो सुचंदो य ।। १५८९ पुन्वभवे भणिदाणा एदे जायंति पुण्णपाकेहिं । अणुजा कमसेो णंदी तह णंदिमित्तसेणा य ।। १५९० तुरिमो य मंदिभूदी बलमहबलदिबला तिविट्ठो र्यं । णवमो दुविट्टणामो ताणं जायंति णव य पडिसत्तू ॥ १५९१ सिरिहरिणीलकंठाँ यसकंठसुकंठसिखिकंठा । अस्सग्गीवहयग्गीवमउरगीव य पडिसन्तू ॥ १५९२
इनमें से प्रथम तीर्थंकरकी उंचाई सात हाथ और आयु एकसौ सोलह वर्ष तथा अन्तिम की आयु एक पूर्वकोटि और उंचाई पांचसौ धनुषप्रमाण होती है || १५८२ ॥ प्रथम -- - उत्सेध ७ । आयु ११६ । अन्तिम – आयु पूर्वकोटि १ । उत्सेध ५०० ।
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शेष तीर्थंकरोंकी उंचाई और आयु इत्यादिके विषय में हमारे पास उपदेश नहीं है । ये तीर्थकर जिन तृतीय भवमें तीनों लोकोंको क्षोभित करनेवाले तीर्थकर नामकर्मको बांधते हैं। उनके उस समय वे नाम ये हैं— श्रेणिक, सुपार्श्व नामक, उदकै, प्रोष्ठिल, कृतसूयै (कटग्रू ), क्षत्रिय, पाविल ( श्रेष्ठी ), शंख, नन्द, सुनन्द, शशांक, सेवके, प्रेमक, अतोरण, रेवते, कृष्ण, सीरी" ( बलराम ), लि, विगलि", द्वीपायन, माणबैंक, नारदें, सुरूपदेश, और अन्तिम सत्यकिपुत्र । ये सब राजवंश में उत्पन्न हुए थे || १५८३-८६ ॥
तीर्थंकरोंके समयमें जो चक्रवर्ती होते हैं, उनके ये नाम हैं- भरते, दीर्घदन्ते, मुक्तदन्ते, गूढदत, श्रीषेणे, श्रीर्भूति, श्रीकान्त, पद्म नामक, महापद्म, चित्रवाहनं, विमलवाहने, और अरिष्टने ।। १५८७-१५८८ ॥
चन्द्र, महाचन्द्रे, चन्द्रधरै ( चक्रधर), वरचन्द्र, सिंह चन्द्र, हरिचन्द्र, श्रीचन्द्र, पूर्णचन्द्र, और सुचन्द्रे ( शुभचन्द्र ), ये पूर्वभव में निदानको न करके पुण्यके उदयसे नौ बलदेव होते हैं । नन्दी, नन्दिमित्रे, नन्दिषेण, चतुर्थ नदिभूति, बल, महाबल, अतिबल, त्रिपृष्ठ, और नववां द्विपृष्ठ, ये नौ नारायण क्रमसे उन उपर्युक्त बलदेवों के अनुज होते हैं । इन नारायणोंके श्रीकंठ, हरिकंठे, नीलकंठ, अकंठ, सुकंठ, शिखिकंठ, अश्वप्रीव, हयग्रीव और मयूरग्रीव, ये क्रमसे नौ प्रतिशत्रु हुआ करते हैं ।। १५८९ - १५९२ ॥
१ ब उद्दक. २ द ब खंभिय ३ द ब प्रेमगरो नाम वद किन्हा, ४ द ब चंदा. ५ द ब चंदसीहचंदो य. ६ द व 'दिवलो तिविच्छाह. ७ द ब 'नीलकंकंठाय सकंठासुकंठ ८ द ब महुरग्गीवा.
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