Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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-४. १५२०]
चउत्थो महाधियारो
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दादणं पिंडग्गं समणा कालो य अंतराणं पि । गच्छंति ओहिणाणं उप्पजइ तेसु एकम्मि॥१५१२ अह को वि असुरदेवोओहीदो मुणिगणाण उवसगं । णादूणं तं ककिं मारेदि हु धम्मदोहि ति ॥ १५१३ ककिसुदो अजिदंजयणामो रक्ख त्ति णमदि तचरणे । तं रक्खदि असुरदेो धम्मे रजं करेज ति ॥ १५१४ तत्तो दोवे वासी सम्मद्धम्मो पयदि जणाणं । कमसो दिवसे दिवसे कालमहप्पेण हाएदे ॥ १५१५ एवं वस्ससहस्से पुह पुह कक्की हवेइ एकेको । पंचसयवच्छरेसुं एकेको तह य उवककी ॥ १५१६ कक्की पडि एकेकं दुस्समसाहुस्स ओहिणाणं पि । संघा य चादुवण्णा थोवा जायंति तक्काले ॥ १५१७ चंडालसबरपाणा पुलिंदणाहलचिलायपहुदीओ। दीसंति णरा बहवो पुव्वणिबद्धेहिं पावेहिं ॥ १५१८ दीणाणाहा कूरा णाणाविहवाहिवेयणाजुत्ता । खप्परकरंकहत्था देसंतरगमेण संतत्ता ॥ १५१९ एवं दुस्समकाले हीयते धम्माउउदयादी । अंते विसमसहामओ उप्पजदि एकवीसमो कक्की ॥ १५२०
तब श्रमण (मुनि) अग्रपिण्डको देकर और ' यह अन्तरायोंका काल है ' ऐसा समझकर [ निराहार ] चले जाते हैं। उस समय उनमेंसे किसी एकको अवधिज्ञान उत्पन्न हो जाता है ॥ १५१२ ॥
__ इसके पश्चात् कोई असुरदेव अवधिज्ञानसे मुनिगणोंके उपसर्गको जानकर और धर्मका द्रोही मानकर उस कल्कीको मार डालता है ॥ १५१३ ॥
तब अजितंजय नामक उस कल्कीका पुत्र — रक्षा करो' इसप्रकार कहकर उस देवके चरणोंमें नमस्कार करता है। तब वह देव 'धर्मपूर्वक राज्य करो' इसप्रकार कहकर उसकी रक्षा करता है ॥ १५१४ ॥
इसके पश्चात् दो वर्ष तक लोगोंमें समीचीन धर्मकी प्रवृत्ति रहती है। फिर क्रमशः कालके माहात्म्यसे वह प्रतिदिन हीन होती जाती है ॥ १५१५ ॥
इसप्रकार एक हजार वर्षोंके पश्चात् पृथक् पृथक् एक एक कल्की, तथा पांचसौ वर्षोंके पश्चात् एक एक उपकल्की होता है ॥ १५१६ ॥
प्रत्येक कल्कीके प्रति एक एक दुष्षमाकालवर्ती साधुको अवधिज्ञान प्राप्त होता है और उसके समयमें चातुर्वर्ण्य संघ भी अल्प होजाते हैं ॥ १५१७ ॥
उस समय पूर्वमें बांधे हुए पापोंके उदयसे चण्डाल, शबर, श्वपच, पुलिन्द, लाहल ( म्लेच्छविशेष ) और किरातप्रभृति, तथा दीन, अनाथ, क्रूर, और जो नाना प्रकारकी व्याधि एवं वेदनासे युक्त हैं, हाथोंमें खप्पर तथा भिक्षापात्रको लिये हुए हैं, और देशान्तरगमनसे संतप्त हैं, ऐसे बहुतसे मनुष्य दिखते हैं ॥ १५१८-१५१९ ।।
___ इसप्रकारसे दुष्पमाकालमें धर्म, आयु और उंचाई आदि कम होती जाती है। फिर अन्तमें विषय स्वभाववाला इक्कीसवां कल्की उत्पन्न होता है ॥ १५२० ।।
१ द ब एक्कंपि. २ द ब असुरदेवा. ३ द ब अदिदंजयणामो. ४ द ब वासो. ५ ब हवे इक्केक्को. ६ द घिलाण, ब चिलाण.
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