Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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- १. १३१७ ]
चउत्थो महाधियारो
[ ३१९
भवराहिमुहे गछिय सोवाणसएहिं दक्षिणमुहेर्ण । उत्तारिये सम्वबलं वञ्चदि सो सरिवणस्स मझेणं ॥ १३२९ तसो सेणाहिवई करयलयरिदेण दंडरयणेण । महणदि कवाडजुगलं माणाए चकवट्टीणं ॥ १३३० उग्बलियकवाडजुगलभंतरपसत्तउण्हीदीए । बारसजोयणमेतं तुरंगरयणेण लंचंति ॥ १३३१ गंतूण दक्षिणमुहो पडिवासिदबलम्मि पविसेदि । पच्छा पच्छिमवयणो सेणवई गिरिवणं एदि ॥ १३३२ दक्षिणमुहेण तत्तो गिरिवणवेदीए तोरणद्दारे । णिस्तरिय मेच्छखंडं साहेदि य वाहिणीजुत्तो॥ १३३३ सम्वे छम्मासहि मेच्छणरिंदा वसम्मि कादूर्ण । एदि हु पुग्वपहेणं वेयड्डगुहाए दारपरियंतं ॥ १३३४ कादण दाररक्खं देवबलं मेच्छरायपडियरिमो । पविसिय खंधावारं पणमइ चकीर्ण पयकमले ॥ १३३५ इय दक्खिणम्मि भरहे खंडदुवं साहिदूण लीलाए । पविसंति हु चक्रधरा सिंधुणईए वणं विउलं ॥ १३३६ गिरितडवेदीदारे पविसिय गिरिदारयणसोवाणे । आरुहिणं वचदि सयलबलं तण्णईये दोतीरे ॥ १३३७
सौ सीढ़ियोंसे पश्चिमकी ओर जाकर और फिर दक्षिणकी ओरसे सब सैन्यको उतारकर वह सेनापति नदीवनके मध्यमें होकर जाता है ॥ १३२९ ॥
___ तदनन्तर सेनाधिपति चक्रवर्तियोंकी आज्ञासे हस्ततलमें धारण किये हुए दण्ड रत्नसे दोनों कपाटोंको ठोकर मारता है ॥ १३३० ॥
उद्घाटित कपाटयुगलके भीतर स्थित उष्णताके भयसे बारह योजनप्रमाण क्षेत्रको तुरंगरत्नसे लांघते हैं ॥ १३३१ ॥
वह दक्षिणकी ओर जाकर प्रतिवासित सैन्यमें (पड़ावमें ) प्रवेश करता है । पश्चात् वह सेनापति पश्चिमाभिमुख होकर पर्वतके वनको जाता है ॥ १३३२ ॥
__ पश्चात् दक्षिणमुख होकर पर्वतीय वनवेदीके तोरणद्वारमेंसे निकलकर सैन्यसे संयुक्त होता हुआ वह म्लेच्छखण्डको सिद्ध करता है ॥ १३३३ ॥
सेनापति छह महिनोंमें सब म्लेच्छ राजाओंको वशमें करके पूर्व मार्गसे वैताढ्यगुहाके द्वारपर्यन्त आता है ॥ १३३४ ॥
वहांपर देवसेनाको द्वारका रक्षक करके म्लेच्छ राजाओंसे परिचारित वह सेनापति पड़ावमें प्रविष्ट होकर चक्रवर्तीके चरणकमलोंमें नमस्कार करता है ॥ १३३५ ।।
___ इसप्रकार दक्षिणभरतमें दो खण्डोंको अनायास ही सिद्ध करके चक्रवर्ती सिन्धुनदीके विशाल वनमें प्रवेश करते हैं ॥ १३३६ ॥
___ पुनः गिरितटसम्बन्धी वेदीके द्वारमें प्रवेश करके और गिरिद्वारकी रत्नमय सीढियोंपर चढ़कर सम्पूर्ण सेना उस नदीके दोनों किनारोंपरसे जाती है ॥ १३३७ ॥
१ द व उत्तोट्ठिय. २ द ब पढिवासिद'. ३ द ब सासादि पदाहिणं जुत्तो...४ द व एदे. ५ दव पणम्मि. ६ दब.चकीय. ७द बतण्णई..
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