Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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-४. १२८२ ]
चउत्थो महाधियारो
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दोणि सया अडहत्तरिजुत्ता वासाण पासणाहस्स । इगिवीससहस्साणिं दुदाल वीरस्स सो कालो ॥ १२७४
वा २७८ । वास २१०४२
. तोडकेतिथपयट्टणकालपमाणं दारुणकम्मविणासयरोणं । जे णिसुगंति पढंति थुणते ते अपवग्गसुहाई लहंते ॥ १२७५ उसहजिणे णिव्वाणे वासतए अट्ठमास मासद्धे । वोलीणम्मि पविट्ठो दुस्समसुसमो तुरिमकालो ॥ १२७६
वा ३, मा ८, दि १५। तस्स य पढमपएसे कोडिं पुश्वाणि आउउक्कस्सो । अडदाला पुट्ठी पणसयपणुवीसदंडया उदओ।। १२७७
पु ४८ । उदय ५२५ । पु १०००००००। उच्छपणो सो धम्मो सुविहिप्पमुहेसु सत्ततित्थेसुं । सेसेसु सोलनेसुं णिरंतरं धम्मसंताण ॥ १२७८ । पल्लस्स पादमद्धं तिचरणपलं खु तिचरणं अद्धं । पल्लस्स पादमेत्तं वोच्छेदो धम्मतिस्थस्स ॥ १२७९ हुंडावसप्पिणिस्स य दोसेणं सत्त होति विच्छेदा । दिक्खादिमुहाभावे अत्थमिदो धम्मरविदेओ॥ १२८० भरहो सगरो मघओ सणक्कुमारो य संतिकुंथुअरा । कमसो सुभउमपउमाँ हरिजयसेणा य बम्हदत्तो य ॥१२८१ एदे वारस चकी पच्चक्खपरोक्खवंदणासत्ता । णिभरभत्तिसमग्गा सव्वाणं तित्थकत्ताणं ॥ १२८२
पार्श्वनाथ स्वामीका वह तीर्थकाल दोसौ अठत्तर वर्ष और वीर भगवान्का इक्कीस हजार ब्यालीस वर्षप्रमाण है ॥ १२७४ ॥ वर्ष २७८ । वर्ष २१०४२।
___ जो तीक्ष्ण कर्मोको नष्ट करनेवाले इस तीर्थप्रवर्तनकालके प्रमाणको सुनते हैं, पढ़ते हैं और स्तुति करते हैं, वे मोक्षसुखोंको प्राप्त करते हैं ॥ १२७५ ॥
ऋषभनाथ तीर्थंकरके निर्वाण होनेके पश्चात् तीन वर्ष और साढ़े आठ मासके व्यतीत होनेपर दुषमसुषमा नामक चतुर्थ काल प्रविष्ट हुआ ।। १२७६ ॥ वर्ष ३, मास ८, दिन १५ ।
उस चतुर्थ कालके प्रथम प्रवेशमें उत्कृष्ट आयु एक पूर्वकोटि, पृष्ठभागकी हड्डियां अड़तालीस, और शरीरकी उंचाई पांचसौ पच्चीस धनुषप्रमाण थी ॥ १२७७ ॥
___ आयु पूर्व १००००००० । पृष्ठास्थियां ४८ । ऊंचाई ध. ५२५ ।
सुविधिनाथको आदि लेकर सात तीर्थों में उस धर्मकी व्युच्छित्ति हुई थी और शेष सोलह तीथोंमें धर्मकी परंपरा निरन्तर रही है ॥ १२७८ ॥
उक्त सात तीर्थों में क्रमसे पाव पल्य, अर्द्ध पल्य, पौन पल्य, पल्य, पौन पल्य, अर्द्ध पल्य और पाव पल्यप्रमाण धर्मतीर्थका उच्छेद रहा था ॥ १२७९ ।।
हुण्डावसर्पिणीके दोषसे यहां सात धर्मके विच्छेद होते हैं। उस समय दीक्षाके अभिमुख होनेवालोंका अभाव होनेपर धर्मरूपी सूर्यदेव अस्तमित होगया था ॥ १२८० ॥
भरत, सगैर, मघवा, सनत्कुमार, शान्ति, कुंथु, अर, सुभौम, पद्म, हरिषेण, जयसेन और ब्रह्मदत्त, ये क्रमसे बारह चक्रवर्ती सब तीर्थंकरोंकी प्रत्यक्ष एवं परोक्ष वंदनामें आसक्त और अत्यन्त गाढ भक्तिसे परिपूर्ण रहे हैं ।। १२८१-१२८२ ॥
१ द तोदिक, ब तोदक. २ द ब विणासणराणं. ३ द संति . ४ द ब वत्ति. ५ द व विच्छेदो, ६ द ब धम्मवर. ७ द ब पउमो.
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