Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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तिलोयपण्णत्ती
[ ४. ९७५
इंदियदणाणावरणाणं वीरअंतरायाएँ । तिविहाणं पगदीणं उक्तस्सखउवसमविद्धस्स ॥ ९७५ संवेसरूवाणं सहाणं तत्थ लिंगसंजुत्तं । एक्कं चिय बीजपदं लढण परोपदेसेणं ॥ ९७६ सम्म पदे आधारे सयलसुदं चिंतिऊण गेण्डेदि । कस्स त्रि महेसिणो जा बुद्धी सा बीजबुद्धि सि ॥ ९७७ । बीजबुद्धी समत्ता |
करिसधारणाए जुत्तो पुरिसो गुरुवएसेणं । णाणाविहगंथेसुं वित्थारे लिंगस बीजाणि ॥ ९७८ गहिण नियमदीए मिस्सेण विणा घरेदि मदिकोट्ठे । जो कोइ तस्स बुद्धी णिद्दिट्टा कोट्ठबुद्धि ति ॥ ९७९
| कोबुद्धी गदौ ।
बुद्धी विक्खणाणं पदाणुसारी हवेदि तिविहप्पा | अणुसारी पडिसारी जहृत्थणामा उभयसारी ॥ ९८० दिवाणमज्झे गुरूवदेसेण एक्कबीजपदं । गेव्हिय उवरिमगंथं जा गिरहदि सा मदी हु अणुसारी ॥ ९८१ | अणुसारी गर्द । आदिवसाणमज्झे गुरूव देसेण एकबीजपदं । गेण्हिय हेट्टिमगंथं बुज्झदि जा सा च पडिसारी ॥ ९८२ | पडिसारी गदं ।
२७२ ।
इन्द्रियावरण, श्रुतज्ञानावरण और वीर्यान्तराय, इन तीन प्रकारकी प्रकृतियोंके उत्कृष्ट विशुद्ध हुए किसी भी महर्षिकी जो बुद्धि, संख्यातस्वरूप शब्दोंके बीच मेंसे लिंगसहित एक ही बीजभूत पदको परके उपदेशसे प्राप्त करके उस पदके आश्रयसे सम्पूर्ण श्रुतको विचार कर ग्रहण करती है, वह बीजबुद्धि है ।। ९७५-९७७ ॥
उत्कृष्ट धारणासे युक्त जो पूर्वक लिंगसहित शब्दरूप बीजोंको कोठे में धारण करता है, उसकी बुद्धि
बीबुद्ध समाप्त हुई |
कोई पुरुष गुरुके उपदेशसे नाना प्रकार के प्रन्थों में से विस्तारअपनी बुद्धिसे ग्रहण करके उन्हें मिश्रणके बिना बुद्धिरूपी कोष्ठबुद्धि कही गई है ।। ९७८- ९७९ ।।
बुद्धि समाप्त हुई ।
विचक्षण पुरुषों की पदानुसारिणी बुद्धि अनुसारिणी, प्रतिसारिणी और उभयसारिणी के भेद से तीन प्रकार है, इस बुद्धिके ये यथार्थ नाम हैं ॥ ९८० ॥
जो बुद्धि आदि, मध्य अथवा अन्तमें गुरुके उपदेशसे एक बीज पदको ग्रहण करके परम प्रन्थको ग्रहण करती है, वह अनुसारिणी बुद्धि कहलाती हैं ।। ९८१ ॥ अनुसारिणी बुद्धि समाप्त हुई ।
गुरुके उपदेशसे आदि, मध्य अथवा अन्तमें एक बीज पदको ग्रहण करके जो बुद्धि अस्तन ग्रन्थको जानती है, वह प्रतिसारिणी बुद्धि कहलाती हैं ।। ९८२ ।। प्रतिसारिणी बुद्धि समाप्त हुई ।
१ द वीरियं अंतरायाए. २ द ब तत्ताणं. ३ द ब चिंतियाण ४ द गंथत्थेसु वित्थरे लिंगसद्द ५५ व कोटूबुद्धि गदं. ६ [ गदा ].
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