Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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२६६ ]
तिलोयपण्णत्ती
[४. ९२८
चउतीसातिसयमिदे अट्टमहापाडिहेरसंजुत्ते। मोक्खयरे तित्थयरे तिहुवणणाहे णमंसामि ॥ ९२८ ( जिणवंदणापयट्टा पल्लासंखेजभागपरिमाणा । चेटुंति विविहजीवा एकेके समवसरणेसुं ॥ ९२९)
कोट्टाणं खेत्तादो जीवक्खेत्तंफलं असंखगुणं । होदूण अपुट्ठ त्ति हु जिणमाहप्पेण ते सम्वे ॥ ९३० संखेजजोयणाणि बालप्पहुदी पवेसणिग्गमणे । अंतोमुत्तकाले जिणमाहप्पेण गच्छति ॥ ९३) मिच्छाइट्रिमभव्वा तेसमसण्णी ण होंति कइआई। तह य अणज्झवसाया संदिद्धा विविहविवरीदा ॥ ९३२ आतंकरोगमरणुप्पत्तीओ वेरकामबाधाओ। तण्हाछुहपीडाओ जिणमाहप्पेण ण हवंति ॥ ९३३
जक्खणामगोवदणमहाजक्खा तिमुहो जक्खेसरो य तुंबुरओ। मादंगविजयअजिओ बम्हो बम्हेसरो य कोमारो ॥१३४ छम्मुहओ पादालो किण्णरकिंपुरुसगरुडगंधव्वा । तह य कुबेरो वरुणो भिउडीगोमेधपासमातंगा ॥ ९३५ गुज्झको इदि एदे जक्खा चउवीस उसहपहुदीणं । तित्थयराणं पासे चेटुंते मत्तिसंजुत्ता ।। ९३६
जो चौंतीस अतिशयोंको प्राप्त हैं, आठ महाप्रातिहार्योंसे संयुक्त हैं, मोक्षको करनेवाले अर्थात् मोक्षमार्गके नेता हैं, और तीनों लोकोंके स्वामी हैं, ऐसे तीर्थंकरोंको मैं नमस्कार करता हूं॥ ९२८॥
एक एक समवसरणमें पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण विविध प्रकारके जीव जिनदेवकी वन्दनामें प्रवृत्त होते हुए स्थित रहते हैं ॥ ९२९ ॥
___ कोठोंके क्षेत्रसे यद्यपि जीवोंका क्षेत्रफल असंख्यातगुणा है, तथापि वे सब जीव जिनदेवके माहात्म्यसे एक दूसरेसे अस्पृष्ट रहते हैं। ९३० ॥
जिनभगवान्के माहात्म्यसे बालकप्रभृति जीव प्रवेश करने अथवा निकलनेमें अन्तर्मुहूर्त . कालके भीतर संख्यात योजन चले जाते हैं ॥ ९३१ ॥
इन कोठोंमें मिथ्यादृष्टि, अभव्य और असंज्ञी जीव कदापि नहीं होते तथा अनध्यवसायसे युक्त, सन्देहसे संयुक्त और विविध प्रकारकी विपरीतताओंसे सहित जीव भी नहीं होते हैं ॥९३२ ॥
- इसके अतिरिक्त वहांपर जिन भगवान्के माहात्म्यसे आतंक, रोग, मरण, उत्पत्ति, वैर, कामबाधा तथा तृष्णा (पिपासा ) और क्षुधाकी पीडायें नहीं होती हैं ।। ९३३ ॥
यक्षोंके नामगोवंदन, महीयक्ष, त्रिमुख, यक्षेश्वर, तुम्बुरव, मातंग, विजय, अजित, ब्रह्म, ब्रह्मेश्वर कुमार, षण्मुख, पाताल, किन्नर, किंपुरुष, गौंड, गंधर्व, कुबेर, वरुण, भृकुटि, गोमेध, पार्श्व, मौतंग और गुहाँक, इसप्रकार ये भक्तिसे संयुक्त चौबीस यक्ष ऋषभादिक तीर्थंकरों के पासमें स्थित रहते हैं । ९३४-९३६ ॥
१ द व °सयमेदे. २ द ब मिच्छाइट्ठीभव्वा. ३ द व भिउदी.
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