Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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तिलोयपण्णत्ती.
[४. ७८१
ताणं चूले उवरिं अट्ठमहापाडिहेरजुत्ताओ। पडिदिसमेकेकाओ रम्माओ जिणिदपडिमाओ ॥ ७८१ माणुलासयमिच्छा वि दूरदो दसणेण थंभाणं । जं होति गलिदमाणा माणथंभं तितं भणिदं ॥७८२ सालत्तयबाहिरए पत्तेक्कं चउदिसासु होति दहा । वीहिं पडि पुब्वादिक्कमेण सब्वेसु समवसरणेसु ॥ ७८३ णंदुत्तरणंदाओ णंदिमई गंदिघोसणामाओ । पुब्धत्थंभे पुन्वादिएसु भागेसु चत्तारो ॥ ७८४ विजया य वइजयंता जयंतअवराजिदाइ णामेहि । दक्षिणथंभे पुवादिएसु भागेसु चत्तारो ॥ ७८५ अभिधाणे य असोगा सुप्पइजुद्धाउँ कुमुदपुंडरिया । पच्छिमथंभे पुष्वादिएसु भाएसु चत्तारो ॥७८६ हिदयमहाणंदाओ सुप्पइबुद्धा पहंकरा णामा । उत्तरथंभे पुथ्वादिएसु भाएसु चत्तारो ॥ ७८७ एदे समचउरस्सा पवरदहा पउमपहुदिसंजुत्ता । टंकुक्किण्णा वेदियचउतोरणरयणमालरमणिज्जा ॥ ७८८ सव्वदहाणं मणिमयसोवाणा चउतडेसु पत्तेक्कं । जलकीडणजोग्गेहि संपुषणं दिव्वदम्वेहिं ॥ ७८९
इनके शिखरपर उपरिम भागमें प्रत्येक दिशामें, आठ महाप्रातिहायोंसे युक्त रमणीय एक एक जिनेन्द्र प्रतिमाएं होती हैं ॥ ७८१ ॥
___ चूंकि दूरसे ही मान स्तम्भोंके देखनेसे मानसे युक्त मिथ्यादृष्टि लोग अभिमानसे रहित हो जाते हैं, इसीलिये इनको ' मानस्तम्भ ' कहा गया है ॥ ७८२ ॥
सब समवसरणोंमें तीनों कोटोंके बाहिर चार दिशाओंमेंसे प्रत्येक दिशामें क्रमसे पूर्वादिक वीथीके आश्रित द्रह ( वापिकायें ) होते हैं ।। ७८३ ॥
पूर्व मान स्तम्भके पूर्वादिक भागोंमें क्रमसे नन्दोत्तरा, नन्दा, नन्दिमती और नन्दिघोषा नामक चार द्रह होते हैं । ७८४ ॥
दक्षिण मानस्तम्भके आश्रित पूर्वादिक भागोंमें क्रमशः विजया, वैजयन्ता, जयन्ता और अपराजिता नामक चार द्रह होते हैं ॥ ७८५ ॥ .
पश्चिम स्तम्भके आश्रित पूर्वादिक भागोंमें क्रमसे अशोका, सुप्रतियुद्धा ( सुप्रसिद्धा, या सुप्रबुद्धा ) कुमुदा और पुण्डरीका नामक चार द्रह होते हैं ॥ ७८६ ॥
उत्तर मानस्तम्भके आश्रित पूर्वादिक भागोंमें क्रमसे हृदयानन्दा, महानन्दा, सुप्रतिबुद्धा और प्रभंकरा नामक चार वह होते हैं ॥ ७८७ ।।
ये उपर्युक्त उत्तम द्रह समचतुष्कोण, कमलादिकसे संयुक्त, टङ्कोत्कीर्ण, और वेदिका, चार तोरण एवं रत्न मालाओंसे रमणीय होते हैं ।। ७८८ ॥
सब द्रहोंके चारों तटोंमेंसे प्रत्येक तटपर जलक्रीडाके योग्य दिव्य द्रव्योंसे परिपूर्ण मणिमयी सोपान होते हैं । ७८९ ।।
१द माणत्यंभं तित्थयं भणिदं. २द बयं. ३ द व होदि. ४ द दक्खिणथंभा. ५ द ब सुप्पाइजुधाऊ.
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