Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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-१. ७९५ ]
चउत्थो महाधियारो
भावणवेतरजोइसकप्पंवासी य कीडणपयहा । गरकिण्णरमिहणाण य कुंकुमपंकेण पिंजरिदा ॥ ७९. एक्कमलसंडे दोहो कुंडाणि णिम्मलजलाई। सुरणरतिरिया तेसु धुव्वंतो चरणरेणूवो ॥ ७९.
।माणथंभा समत्ता। वररयणकेदुतोरणधंटाजालादिएहिं जुत्ताओ । भादिमवेदी वि तहो सम्वेसु वि समवसरणेसु॥ ७९२ गोउरवारवाउलपहृदी सम्वाण वेदियाणे तहा । अट्टत्तरसयमंगलणवणिहिदव्वाइं पुव्वं व ॥ ७९३ णवरि विसेसो णियणियधूलीसालाण मूलरुंदेहिं । मूलोवरिभागेसुं समाणवासाओ वेदीओ ॥ ७९४
२४ | २३ २२ २१ । २० १९| १८ | १७ १६ १५ १४ | १३ | १४४ १४४१४४ १४४ १४४ १४४ १४४ १४४ १४४ १४४ १४४ १४४ |
१४४ १४४१४४ १४४ १४४१४४१४४ १४४ १४४१४४ २८८ ७२
।पढमवेदी समत्ता। खाइयखेत्ताणि तदो हवति वरसच्छेसलिलपुण्णाणि।
णियणियजिणउदएहि चउभजिदेहिं सरिच्छगहिराणि ॥ ७९५ १२५ । २२५ । १०० । १७५। ७५। १२५। ५०। ७५। २५। ३५। २० । ३५।१५।
२५ । ४५। १०।३५ । १५। २५। ५।१५। ५। हत्था।९।
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इन द्रहोंमें भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिषी और कल्पवासी देव क्रीडामें प्रवृत्त होते हैं, तथा वे मनुष्य एवं किन्नरयुगलोंके कुंकुमपंकसे पीतवर्ण रहते हैं ॥ ७९० ॥
___प्रत्येक कमलखंड अर्थात् द्रहके आश्रित निर्मल जलसे परिपूर्ण दो दो कुण्ड होते हैं, जिनमें देव, मनुष्य और तिर्यश्च अपने पैरोंकी धूलिको धोया करते हैं ॥ ७९१ ।।
मानस्तम्भोंका वर्णन समाप्त हुआ। सब समवसरणोंमें उत्तम रत्नमय धजा, तोरण और घंटाओंके समूहादिकसे युक्त प्रथम वेदियां भी उसीप्रकार होती हैं ॥ ७९२ ॥
___सब वेदियोंके गोपुरद्वार और पुत्तलिकाप्रमृति तथा एकसौ आठ मंगलद्रव्य एवं नौ निधियां पूर्वके ही समान होती हैं ॥ ७९३ ॥
विशेषता केवल यह है कि इन वेदियोंके मूल और उपरिम भागका विस्तार अपने अपने धूलिसालोंके मूलविस्तारके समान होता है ।। ७९४ ॥
प्रथम वेदीका कथन समाप्त हुआ। इसके आगे उत्तम एवं स्वच्छ जलसे परिपूर्ण और अपने जिनेन्द्रकी उंचाईके चतुर्थ भागप्रमाण गहरे ग्वातिकाक्षेत्र होते हैं ।। ७९५ ॥
१ द ब तदा. २ द वेदिआण. ३ ६ खाइयमेत्ताणि. ४ द ब वरसत्त'.'
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