Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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२५४ ]
तिलोयपण्णत्ती
[४. ८४०
तत्तो चउस्थवेदी हुवेदि णियपढमवेदियासरिसा । णवीर विसेसो भावणदेवा दाराणि रक्खंति ॥ ८४०
।चतुर्थवेदी सम्मत्ता । तत्तो भवणखिदीओ भवणाई तासु रयणरइदाओ। धुव्वंतधयवडाई वरतोरणतुंगदाराई ॥ ८४१ सुरमिहुणगेयणचणतूररवेहिं जिणाभिसेएहिं । स्रोहंते ते भवणा एकेके भवणभूमीसु ॥ ८४२ उववणपहदि सव्वं पुवं विय भवणपंतिविखंभा । णियपढमवेदिवासे गुणिदे एक्कारसहि सारिच्छा ॥ ८४३
२६४ / २५३ | २४२) २३१ २२० २०९ | १९८ १८७ १७६ १६५/१५४ | १४३ ५७६ ५७६/५७६५७६ ५७६ ५७६ ५७६ ५७६ ५७६/५७६ ५७६ ५७६ १३२ १२१/११० ९९| ८८ ७७ ६६ ५५ ४४ ३३, ५५ । ४४ ५७६ ५७६ ५७६ | ५७६ ५७६ | ५७६ ५७६ / ५७६ | ५७६ / ५७६ ११५२ / ११५२
। सत्तमभवणावणी सम्मत्ता।। भवणखिदिप्पणिधीसं वीहिं पडि होति णवणवा थूहा । जिणसिद्धप्पडिमाहि अप्पडिमाहिं समाइण्णा ॥ ८४४ छत्तादिछत्तजुत्ता णञ्चतविचित्तधयवलालोलो । अंडमंगलपरियरिया ते सव्वे दिव्वरयणमया ॥ ८४५ एक्केकेसि थूहे अंतरयं मयरतोरणाण सयं । उच्छेहो थूहाण' णियचेत्तदुमाण उदयसमं ॥ ८४६
६००० । ५४०० । ४८०० । ४२०० । ३६००। ३००० । २४००। १८०० । १२०० । १०८०।
इससे आगे अपनी प्रथम वेदीके सदृश चौथी वेदी होती है। विशेषता केवल इतनी है कि यहां भवनवासी देव द्वारोंकी रक्षा करते हैं ॥ ८४० ॥
चतुर्थ वेदीका वर्णन समाप्त हुआ। ___इससे आगे भवन भूमियां होती हैं। जिनमें रत्नोंसे रचित, फहराती हुई ध्वजा-पताकाओंसे सहित और उत्तम तोरणयुक्त उन्नत द्वारोंवाले भवन होते हैं ॥ ८४१ ॥
भवन भूमियोंपर स्थित वे एक एक भवन सुरयुगलोंके गीत, नृत्य एवं बाजेके शब्दोंसे तथा जिनाभिषेकोंसे शोभायमान होते हैं ।। ८४२ ।।
यहां उपवनादिक सब पहिलेके ही समान होते हैं । उपर्युक्त भवनपंक्तियोंका विस्तार ग्यारहसे गुणित अपनी प्रथम वेदीके विस्तारके समान होता है ॥ ८४३ ।।
सातवीं भवन भूमिका वर्णन समाप्त हुआ। भवनभूमिके पार्श्वभागोंमें प्रत्येक वीथीके मध्यमें जिन और सिद्धोंकी अनुपम प्रतिमाओंसे व्याप्त नौ नौ स्तूप होते हैं ॥ ८४४ ॥
वे सब स्तूप छत्रके ऊपर छत्रसे संयुक्त, फहराती हुई ध्वजाओंके समूहसे चंचल, आठ मंगलद्रव्योंसे सहित, और दिव्य रत्नोंसे निर्मित होते हैं ॥ ८४५ ॥
एक एक स्तूपके बीचमें मकरके आकार सौ तोरण होते हैं । इन स्तूपोंकी उंचाई अपने चैत्यवृक्षोंकी उंचाईके समान होती है ।। ८४६ ॥
१ द ब °धयवदाई. २ द धयवलालोवा. ३ द ब थूहाणि.
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