Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
View full book text
________________
२४२ ]
तिलोयपण्णत्ती
[४.७७२
बिदियपीढाणं सोवाणं
४।४।४।४।४।४।४।४।४।४।४।४।४। ।४।४।४ । ४।४।४।
४ । ४।४।४। [तदियपीढाणं सोवाणं-]
४।४।४।४।४ | ४ । ४।४।४ । ४।४।४। ४ । ४ । ४।४। ४।४।४।४।
४।४।४।४। पढमाण बिदियाणं वित्थारं माणथंभपीढाणं । जाणेदि जिणेदो त्ति य उच्छिण्णो अम्ह उवएसो ॥ ७७२ दंडा तिणि सहस्सा तियहरिदा तदियपीढवित्थारो। उसहजिणिदे कमसो पणघणहीणा य जाव णमिजिणं ॥७७३
३०००/२८७५) २७५०/ २६२५ २५००/२३७५/२२५० २१२५ २००० १८७५
१७५० १६२५ १५००/ १३७५ | १२५० | ११२५/१०.०८७५ ७५० । ६२५ ।
५००
३७५
पणवीसाधियछस्सयधणूणि पासम्मि छकभजिदाणि । दंडाणं पंचसदा छक्कहिदा वीरणाहम्मि ॥ ७७४
६२५ ५००
पीढाण उवरि माणथंभा उसहम्मि ताण बहलतं । दुपणणवतिदुगदंडा अंककमे तिगुणअट्ठपविहत्ता ॥ ७७५ भडणउदिअधियणवसयऊणा कमसो य णेमिपरियंतं । पण्णकदी पंचूणा चउवासहिदा य पासणाहम्मि ॥ ७७६
द्वितीय पीठोंकी सीढियोंका प्रमाण---( मूलमें देखिये ). तृतीय पीठोंकी सीढियोंका प्रमाण-( मूलमें देखिये ).
प्रथम और द्वितीय मानस्तम्भ-पीठोंका विस्तार जिनेंद्र ही जानते हैं, हमारे लिए तो इसका उपदेश अब नष्ट हो चुका है ॥ ७७२।
___ ऋषभ देवके समवसरणमें तृतीय पीठका विस्तार तीनसे भाजित तीन हजार धनुष प्रमाण था। फिर इसके आगे नेमिजिनेन्द्रतक क्रमशः उत्तरोत्तर पांचका घन अर्थात् एकसौ पच्चीसभाज्य राशिमेंसे कम होते गये हैं ।। ७७३ ॥
भगवान पार्श्वनाथके समवसरणमें तृतीय पीठका विस्तार छहसे भाजित छहसौ पच्चीस धनुष और वीरनाथ भगवान्के छहसे भाजित पांचसौ धनुषप्रमाण था ॥ ७७४ ॥
पीठोंके ऊपर मानस्तम्भ होते हैं । उनका बाहल्य ऋषभ देवके समवसरणमें आठके तिगुणे अर्थात् चौबीससे प्रविभक्त, अंकक्रमसे दो, पांच, नौ, तीन और दो अर्थात् तेईस हजार नौसौ बावन ( २३९५२ ) धनुषप्रमाण था। इसके आगे नेमिनाथ तीर्थकरतक भाज्य राशिमेसे क्रमसे उत्तरोत्तर नौसौ अट्ठानबै कम होते गये हैं। भगवान् पार्श्वनाथके समवसरणमें मानस्तम्भोंका बाहल्य चौबीससे भाजित पचासके वर्गमेंसे पांच कम अर्थात् दो हजार चारसौ पंचानबे बटे चौबीस धनुषप्रमाण था ।। ७७५-७७६ ॥
१ द पुणवीसधिय', व पणवीसधिय'. २ द तालबदलतं.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org