Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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-४ ४५७ ]
उत्थो महाधियारो
सुरतरुलुद्धा जुगला अण्णोष्णं ते कुणंति संवादं । सीमंकरेण सीमं काढूण णिवारिदा सब्वे ॥ ४५१ सिक्खं कुणंति ताणं पडिसुदिपहूदी कुलंकरा पंच । सिक्खणकम्मणिमित्तं दंड कुब्वंति हाकोर ।। ४५२ तम्मणुवे तिदिवगदे अडलक्खावहिदपलपरिकंते । सीमंधरो त्ति छट्टो उप्पज्जदि कुलकरो पुरिसो ॥ ४५३
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तस्सुच्छेहो दंडा पणवीसम्भहियसत्तसयमेत्ता । दसलक्खभजिदपल्लं आऊ देवी जसोधरा णाम ॥ ४५४
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दंड ७२५ |
तक्काले कप्पदुमा अदिविरला अप्पफलरसा होंति । भोगणराणं तेसुं कलहो उप्पज्जदे णिचं ॥ ४५५ सम्वक्कलह निवारण हेदूओ ताण कुणइ सीमाणं । तरुगच्छादी चिन्हं तेण य सीमंकरो भणिदो ॥ ४५६ तम्मणुवे सग्गगदे असीदिलक्खा व हरिदपलम्मि । वोलीणे उप्पण्णी सत्तमभो विमलवाहणो ति मणू ॥ ४५७
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भोग भूमिजयुग कल्पवृक्षोंके विषयमें लोभयुक्त होकर परस्परमें विवाद करने लगे । तब सीमंकर कुलकरने सीमा करके उन सबको परस्परके संघर्षसे रोका ॥ ४५१ ॥
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उपर्युक्त प्रतिश्रुति आदिक पांच कुलकर उन भोगभूमिजोंको शिक्षा करते हैं और इस शिक्षण कार्यके निमित्त 'हा' इसप्रकारका दण्ड भी करते हैं ॥ ४५२ ॥
इस कुलकरके स्वर्गगमन के पश्चात् आठ लाखसे भाजित पत्यप्रमाण कालके व्यतीत होनेपर सीमन्धर नामक छठा कुलकर पुरुष उत्पन्न होता है || ४५३ ॥ ....... 1
उसके शरीरका उत्सेध सातसौ पच्चीस धनुष और आयु लाखसे भाजित पल्य प्रमाण थी । इसकी देवीका नाम यशोधरा था ॥ ४५४ ॥ दं. ७२५ । प. १००....
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इस कुलकरके समयमें कल्पवृक्ष अत्यन्त विरल और अल्प फल व रससे युक्त हो जाते हैं, इसीलिये भोगभूमिज मनुष्यों के बीच इनके विषयमें नित्य ही कलह उत्पन्न होने लगता है ॥ ४५५ ॥
बद्द छठा कुलकर इस सब कलहको दूर करने के निमित्तभूत वृक्षसमूहादिकको चिह्नरूप मानकर सीमा नियत करता है, इसीलिये वह सीमङ्कर कहा गया है ॥ ४५६ ॥
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इस मनुके स्वर्गगमनके पश्चात् अस्सी लाखसे भाजित पल्यप्रमाण कालका व्यतिक्रम होनेपर विमलवाहन नामक सातवां मनु उत्पन्न हुआ || ४५७ ॥ प. १
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१ द सुरतरुलद्धा. २ द हूकारं. ३ द ब वाहण ति.
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