Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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तिलोयपण्णत्ती
[४.४०९
एत्तियमेत्तविसेसं मोत्तूणं सेसवण्णणपयारा । कालम्मि सुसमणामे जे भणिदो एत्थ वत्तव्वा ॥ ४०९). भोगखिदीए ण होंति हु चोरारिप्पहुदिविविहबाधाओ। असिपहुदिच्छक्कम्मा सीदादववादवरिसाणि ॥४१० गुणजीवा पजत्ती पाणा सण्णा य मग्गणा कमसो । उवजोगो कहिदम्वा भोगखिदीसंभवाण जहजोग्ग ॥ ४११ जीवसमासा दोणि य णिवत्तियपुण्णपुण्णभेदेणं । पजत्ती छब्भेया तेत्तियमेत्ता अपजत्ती ॥ ४१२ अक्खा मणवचिकाआ उस्सासाऊ हुवंति दस पाणा । पजत्ते' इदरस्सि मणवचिउस्सासपरिहीणा ॥ ४१३ चउसण्णा णरतिरिया सयला तसकाय जोगएकरसं । चउमणचउवयणाई ओरालेदुगं च कम्मइयं ॥ ११४ पुरिसित्थीवेदजुदं सयलकसाएहिं संजुदा णिचं । छण्णाणजुदा ताई मदिमोहीणाणसुदणाणे ॥ ४१५ मदिसुदअण्णाणाई विभंगणाणं असंजदा सम्वे । तिईसणा य ताई चक्खुअचक्खूहि मोहिदसणयं ॥ ४१६
भोगापुण्णएँ मिच्छे सासणसम्मे य असुहतियलेस्सं । काऊ जहण्ण सम्मे मिच्छचउक्के सुभतियं पुण्णे ॥ ४१७
इतनीमात्र विशेषताको छोड़कर शेष वर्णनके प्रकार, जो सुषमा नामक कालमें कह आये हैं, वही यहांपर भी कहना चाहिये ॥ ४०९॥
भोगभूमिमें चोर एवं शत्रु आदिकी विविध बाधायें, असि इत्यादिक छह कर्म, और शीत, आतप, वात्या (प्रचंड वायु ) एवं वर्षा नहीं होती ॥ ४१० ॥
भोगभूमिमें उत्पन्न हुए जीवोंके यथायोग्य गुणस्थान, जीवसमास, पर्याप्ति, प्राण, संज्ञा, मार्गणा और उपयोग, इनका क्रमसे कथन करना चाहिये ॥ ४११ ॥
इन जीवोंके निवृत्यपर्याप्त और पर्याप्तके भेदसे दो जीवसमास, छह प्रकारकी पर्याप्तियां और इतनी ही अपर्याप्तियां भी होती हैं ॥ ४१२ ।।
उनके पर्याप्त अवस्थामें पांचों इन्द्रियां, मन, वचन, काय, श्वासोच्छवास और आयु, ये दश प्राण; तथा इतर अर्थात् अपर्याप्त अवस्थामें मन, वचन और श्वासोच्छ्वाससे रहित शेष सात प्राण होते हैं ॥ ४१३ ॥
___ उन जीवोंके आहार, भय, मैथुन और परिग्रह, ये चारों संज्ञायें होती हैं । चौदह मार्गणाओंमेंसे गतिकी अपेक्षा वे जीव मनुष्य और तिर्यच; इन्द्रियकी अपेक्षा सकल अर्थात् पंचेन्द्रिय; कायँकी अपेक्षा त्रस; योगकी अपेक्षा चार मन, चारों वचन, दो औदारिक (औदारिक, औदारिकमिश्र), कार्मण, इसप्रकार ग्यारह योग; वेदॆकी अपेक्षा पुरुष और स्त्रीवेदसे युक्त; कार्यकी अपेक्षा नित्य सभी कषायोंसे संयुक्त; ज्ञानकी अपेक्षा मति, श्रुत, अवधि, मतिअज्ञान, श्रुतअज्ञान और विभंग ये छह ज्ञान; संयमकी अपेक्षा सब ही असंयत; दर्शनकी अपेक्षा चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन और अवधिदर्शन ये तीन दर्शन; लेइयाकी अपेक्षा भोगभमिजोंके अपर्याप्त अवस्थामें मिथ्यात्व एवं सासादन गुणस्थानमें तीन अशुभ लेश्यायें, और चतुर्थ गुणस्थान में कपोत लेश्याका जघन्य अंश, तथा पर्याप्त
' १दब जो भणिदो.. २द जहजोगं. ३द मणुवचि. ४दब पजत्ती. ५ब उरालदुर्ग. ६ द व पुण्णग. ७ ब पुणे.
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