Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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- ३. ५७ ]
तिदियो महाधियारो
भिंगार कलस दप्पणधय चामरछत्तवियणसुपइट्टा । इय अट्ठमंगलाणिं पत्तेक्कं अट्ठअहियसयं ॥ ४९ दिप्पंतरयणदीवा जिणभवणा पंचवण्णरयणमया । गोसीसमलय चंदणकालागरुधूवगंधड्डा ॥ ५० भंभामुइंगमद्दलजयघंटा कंस तालतिवलीणं । दुंदुहिपडहादीणं सदेहिं णिच्चहल बोला ॥ ५१ सिंहासनादिसहिदा चामरकरणागजक्खमिहुणजुदा । णाणाविहरयणमया जिणपडिमा तेसु भवणेसुं ॥ ५२ बाहत्तरि लक्खाणि कोडीओ सत्त जिणणिकेदाणिं । आदिणिहणुज्झिदाणिं भवणसमाई विराजंति ॥ ५३
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सम्मत्तरयणजुत्ता ब्भिरभत्तीय णिच्चमञ्चति । कम्मक्खवणणिमित्तं देवा जिणणाहपडिमाओ ॥ ५४ कुलदेवा इदि मण्णिय अण्णेहिं बोहिया बहुपयारं । मिच्छाइट्ठी णिचं पूजति जिदिपडिमाओ ॥ ५५ । जिनभवणा गढ़ा |
कूडाण समंतादो पासाद होंति भवणदेवाणं । णाणाविद्दविण्णौसा वरकंचणरयणणियरमय ॥ ५६ सत्तट्टणवदसादिय विचित्तभूमीहिं भूमिदा सव्वे । लंबंतरयणमाला दिप्पंत मणिप्पदीयकंतिल्ला ॥ ५७
झारी, कलश, दपण, ध्वजा, चामर, छत्र, व्यजन और सुप्रतिष्ठ, इन आठ मंगल द्रव्योंमें से -वहां प्रत्येक एकसौ आठ होते ह ॥ ४९ ॥
ये जिनभवन चमकते हुए रत्नदीपकों से सहित, पांच वर्णके रत्नोंसे निर्मित, गोशीर्ष, मलयचंदन, कालागरु और धूपके गंधसे व्याप्त, तथा भंभा, मृदंग, मर्दल, जयघंटा, कांस्यताल, तिवली, दुंदुभि एवं पटहादिकके शब्दोंसे नित्य ही शब्दायमान रहते हैं ॥ ५०-५१ ॥
उन भवनोंमें सिंहासनादिकसे सहित, हाथमें चँवर लिये हुए नागयक्षयुगलसे युक्त, और नानाप्रकारके रत्नोंसे निर्मित, ऐसी जिनप्रतिमायें विराजमान हैं ॥ ५२ ॥
आदि-अन्तसे रहित ( अनादिनिधन ) वे जिनभवन, भवनवासी देवोंके भवनों की संख्याप्रमाण सात करोड बहत्तर लाख, सुशोभित होते हैं ॥ ५३ ॥
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जो देव सम्यग्दर्शनरूपी रत्नसे युक्त हैं, अर्थात् सम्यग्दृष्टि हैं, वे कर्मक्षयके निमित्त नित्य ही इन जिनप्रतिमाओंकी भक्तिसे पूजा करते हैं ॥ ५४ ॥
इसके अतिरिक्त अन्य सम्यग्दृष्टि देवोंसे सम्बोधित किये गये मिथ्यादृष्टि देव भी कुलदेवता मानकर उन जिनेन्द्र - मूर्तियोंकी नित्य ही बहुतप्रकार से पूजा करते हैं ॥ ५५ ॥ जिन भवनों का वर्णन समाप्त हुआ ।
कूटों के चारों तरफ नानाप्रकारकी रचनाओंसे युक्त और उत्तम सुवर्ण एवं रत्नसमूहसे निर्मित भवनवासी देवोंके प्रासाद हैं ॥ ५६ ॥
सब भवन सात, आठ, नौ, दश, इत्यादिक विचित्र भूमियोंसे भूषित; लंबायमान रत्नमालाओं से सहित; चमकते हुए मणिमय दीपकों से सुशोभित; जन्मशाला, अभिषेकशाला, भूषणशाला,
१ ब अडअहिंसय २ द ब गोसीर ३ द व समत्तादो ४ द ब पासादो. ५ द ब णाणाविविविणासं. ६ ब कंचणणियर.
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