Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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-३. ११२]
तिदियो महाधियारो
[ १२५
चालीसुत्तरमेक्कं' वीसब्भहियं सयं च केवलयं । सेसिंदाणं' आदिमपरिसप्पहुदीसु देवीभो ॥१०६
१४०। १२० । १००। असुरादिदसकुलेसुं हुवंति सेणासुराण पत्तेक्कं । पण्णासा देवीलो सयं च परो महत्तरसुराणं ॥ १०७
५०। १००। जिणदिपमाणाओ होति पइण्णयतियस्स देवीओ। सम्वणिगिट्टसुराणं पि देवीमो बत्तीस पत्तेकं ॥ १०८
एदे सम्वे देवा देविंदाणं पहाणपरिवारा । अण्णे वि यप्पधाणा संखातीदा विधायंति ॥ १०९ इंदपडिंदप्पहुदी तद्देवीओ मणेण आहारं । अमयमयमइसिणिद्धं संगिण्हते णिरुवमाणे ॥ ११० चमरदुगे आहारो वरुससहस्सेण होदि णियमेण । पणुवीसदिणाण दलं भूदाणंदादिछण्णं पि॥१११
व १०००। दि २५।
बारसदिणेसु जलपहपहुदीछण्णं पि भोयणावसरो । पण्णरसवासदलं अमिदगदिप्पहुदिछचम्मि ॥ ११२
१२।१५।
शेष इन्द्रोंके आदिम पारिषदादिक देवोंके क्रमसे एकसौ चालीस, एकसौ बीस और केवल सौ देवियां होती हैं ॥ १०६ ॥ १४०, १२०, १०० ।
असुरादिक दश कुलों में सेना-सुरों से प्रत्येकके उत्कृष्ट पचास, और महत्तर सुरोंके सौ देवियां होती हैं ॥ १०७ ॥ ५०, १०० ।
प्रकीर्णक, आभियोग्य और किल्बिषिक, इन तीन देवोंकी देवियां जिनभगवानसे कहे गये प्रमाणरूप होती हैं । सम्पूर्ण निकृष्ट देवों से भी प्रत्येकके बत्तीस देवियां होती हैं । १०८ ॥ ३२ ।
ये सब उपर्युक्त देव इन्द्रोंके प्रधान परिवारस्वरूप होते हैं। इनके अतिरिक्त अन्य और भी अप्रधान परिवाररूप होते हैं, जो असंख्यात कहे गये हैं ॥ १०९॥
___ इन्द्र और प्रतीन्द्रादिक तथा इनकी देवियां अति स्निग्ध और अनुपम अमृतमय आहारको मनसे ग्रहण करती हैं ॥ ११० ॥
चमरेन्द्र और वरोचन इन दो इन्द्रोंके नियमसे एक हजार वर्षोंके वीतनेपर आहार होता है। इसके आगे भूतानन्दादिक छह इन्द्रोंके पच्चीस दिनोंके आधे अर्थात् साढ़े बारह दिनोंमें आहार होता है ॥ १११ ॥ वर्ष १००० । दि. २३।
जलप्रभादिक छह इन्द्रोंके बारह दिनमें, और अमितगतिप्रभृति छह इन्द्रोंके पन्द्रहके आधे अर्थात् साढ़े सात दिनमें आहारका अवसर आता है ।। ११२ ॥ दि. १२ । १५ ।
१ब मेक्कसयं. २दब देविंदाणं. ३ द प्पमाणाओ. ४ दबणिवरुवमणं.५द चरमदुगे. ६६वरम,
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