Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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-४. ३५१]
चउत्थो महाधियारो
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पाणंगरियंगा भूसणवस्थंगभोयणंगा य । आलयदीवियभायणमालातेजंगमादिकप्पतरू ॥ ३४२ पाणं मधुरसुसादं करसेहि जुदं पसत्यमइसीदं । बत्तीसभेदजुत्तं पाणंगा देति तुट्टिपुट्टियरं ॥ ३४३ सूरंगा वरवीणापटुपटहमुइंगमल्लरीसंस्खा । दुंदुभिभंभामेरीकाहलपहुदाइ देंति तूरग्गों ।। ३४४ तरभो वि भूसणंगा कंकणकडिसुत्तहारकेयूरा। मंजीरकडयकुंडलतिरीडमउडादिय देति ॥३४५ वस्थंगा णितं पहुंचीणसुवरखउमपहदिवत्थाणि । मणणयणाणंदकर णाणावत्यादि ते देति ॥ ३४६ सोलसविहमाहारं सोलसमेयाणि वेंजणाणिं पि । चोइसविहसोवाइं खजाणि विगुणचउवणं ॥ ३४७ सायाणं च पयारे तेसट्टीसंजदाणि तिसयाणि । रसभेदा तेसट्ठी देति फुडं भोयणंगदुमा ॥ ३४८ . सस्थिभणंदावत्तप्पमुहा जे के वि दिवपासादा। सोलसभेदा रम्मा देति हु ते आलयंगदुमा ।। दीवंगदुमा साहापवालफलकुसुममंकुरादीहिं । दीवा इव पजलिदा पासादे देंति उज्जोवं ॥ ३५९ भायणभंगा कंचणबहुरयणविणिम्मियाइ धवलाई । भिंगारकलसगग्गरिचामरपीढादियं देति ॥ ३५),
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भोगभूमिमें पानांग, तूर्यांग, भूषणांग, वस्त्रांग, भोजनांग, आलयांग, दीपांग, भाजनांग मालांग और तेजांग आदि कल्पवृक्ष होते हैं ॥ ३४२ ॥
इनमेंसे पानांग जातिके कल्पवृक्ष भोगभूमिजोंको मधुर, सुस्वादु, छह रसोंसे युक्त, प्रशस्त, अतिशीत, और तुष्टि एवं पुष्टिको करनेवाले, ऐसे बत्तीस प्रकारके पेय द्रव्यको दिया करते हैं ॥३४३॥
तूर्यांग जातिके कल्पवृक्ष उत्तम वीणा, पटु पटह, मृदंग, झालर, शंख, दुंदुभि, भंभा, भेरी और काहल इत्यादि भिन्न भिन्न प्रकारके वादित्रोंको देते हैं ॥ ३४४ ॥
. भूषणांग जातिके कल्पवृक्ष कंकण, कटिसूत्र, हार, केयूर, मंजीर, कटक, कुण्डल, किरीट और मुकुट इत्यादि आभूषणोंको प्रदान करते हैं ॥ ३४५ ॥
वे वस्त्रांग जातिके कल्पवृक्ष नित्य चीनपट एवं उत्तम क्षौमादि वस्त्र तथा अन्य मन और नयनोंको आनन्दित करनेवाले नाना प्रकारके वस्त्रादि देते हैं ॥ ३४६ ॥
भोजनांग जातिके कल्पवृक्ष सोलह प्रकारका आहार व सोलह प्रकारके व्यंजन, चौदह प्रकारके सूप ( दाल आदि ), चउवनके दुगुणे अर्थात् एकसौ आठ प्रकारके खाद्य पदार्थ, स्वाध पदार्थोके तीनसौ तिरेसठ प्रकार, और तिरेसठ प्रकारके रसभेदोंको पृथक् पृथक दिया करते हैं ॥ ३४७-४८ ॥
__ आलयांग जातिके कल्पवृक्ष, स्वस्तिक और नन्द्यावर्त इत्यादिक जो सोलह प्रकारके रमणीय दिव्य भवन होते हैं, उनको दिया करते हैं ॥ ३४९ ॥
दीपांग जातिके कल्पवृक्ष प्रासादोंमे शाखा, प्रवाल ( नवजात पत्र ), फल, फल और अंकुरादिकके द्वारा जलते हुए दीपकोंके समान प्रकाश देते हैं ॥ ३५० ॥
भाजनांग जातिके कल्पवृक्ष सुवर्ण एवं बहुतसे रत्नोंसे निर्मित धवल झारी, कलश, गागर, चामर और आसनादिक प्रदान करते हैं ॥ ३५१ ॥
१द
पदह. २ दबदरंगा. ३ द व पडिवीण. ४.द सोहा.
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