Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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-१. ३३१]
चउत्यो महाधियारो
[१८५
तीए गुंछा गुम्मा कुसुमंकुरफलपवालपरिपुण्णा । बहमो विचित्सवण्णा सक्खसमूहा समुत्संगा ॥३२५ काहारकमलकुवलयकुमुदुजलपवाहपडहस्था'। पोक्खरणीवावीमो मभरादिविवाजियों होति ॥ ३२४ पुक्खरणीपहुदणं चउतरभूमीसु रयणसोवाणा' । तेसु वरपासादा सयणासणणिवहपरिपुष्णा ॥ ३२५
णिस्सेसवाहिणासणमिदोवमविमलसलिलपरिपुण्णा। ।
रेहति दिग्वियाओ जलकीडणदिवदव्वजुदा ॥३२६ भाइमुत्तयाण भवणा सयणासणसोभिदा सुपासादा । विविचित्तं भासते णिरूवमं भोगभूमीए ॥३२७ धरणिधरा उत्तुगी कंचणवररयणणियरपरिणामा । णाणाविहकप्पहर्मसंपुण्णा दिग्विभादिजुदा ॥ ३२८ धरणी वि पंचवण्णा तणुमणणयणाण णंदणं कुणह । वाजिंदणीलमरगदमुत्ताहलपउमरोयफलिहजुदा ॥ ३२९ . पवराउ वाहिणीको दोतसोहंतरयणसोवाणा । भमयवरखीरपुण्णा मणिमयसिगदाहि सोहंति ॥ ३३० । संखपिपीलियमक्कुणगोमच्छीदंसमसय किमिपहदी। वियलिंदिया ण होति हणियमेणं पढमकालम्मि ॥३३॥
उस कालमें पृथिवीपर गुच्छा, गुल्म ( झाडी ), पुष्प, अंकुर, फल एवं नवीन पत्तोंसे परिपूर्ण, विचित्र वर्णवाले और ऊंचे, ऐसे बहुतसे वृक्षोंके समूह होते हैं ॥ ३२३ ॥
वहांपर कल्हार, कमल, कुवलय और कुमुद, इन विशेष जातिके कमल पुष्पों तथा उज्ज्वल प्रवाहसे परिपूर्ण और मकरादिक जलजंतुओंसे रहित, ऐसी पुष्करिणी व वापिकायें होती हैं ॥३२४॥
___ इन पुष्करिणी आदिककी चारों तटभूमियोंमें रत्नोंकी सीढ़ियां होती हैं । उनमें शम्या और आसनोंके समूहोंसे परिपूर्ण उत्तम भवन हैं ॥ ३२५ ॥
सम्पूर्ण व्याधियोंको नष्ट करनेवाले अमृतोपम निर्मल जलसे परिपूर्ण और जलक्रीडाके निमित्तभूत दिव्य द्रव्योंसे संयुक्त, ऐसी दीर्घिकायें शोभायमान होती हैं ॥ ३२६ ॥
भोगभूमिमें अतिमुक्तकों अर्थात् अति स्वच्छंद भोगभूमिओंके भवन शय्या एवं आसनोंसे मुशोभित सुन्दर प्रासाद अनुपम और सुविचित्र प्रतिभासित होते हैं ॥ ३२७ ॥
वहांपर सुवर्ण एवं उत्तम रत्नसमूहोंके परिणामरूप, नाना प्रकारके कल्पवृक्षोंसे परिपूर्ण, और दीर्घिकादिकसे संयुक्त उन्नत पर्वत हैं ॥ ३२८ ॥
पंचवर्णवाली और हीरा, इन्द्रनील, मरकत, मुक्ताफल, पद्मराग तथा स्फटिक मणिसे संयुक्त वहाकी पृथिवी भी तन, मन एवं नयनोंको आनन्द देती है ॥ ३२९॥
वहां उभय तटोंपर शोभायमान रत्नमय सीढ़ियोंसे संयुक्त और अमृतके समान उत्तम क्षीर ( जल ) से परिपूर्ण, ऐसी प्रवर नदियां मणिमय वालुकासे शोभायमान होती हैं ॥३३०॥
प्रथम कालमें नियमसे शंख, चीटी, खटमल, गोमक्षिका, डांस, मच्छर और कृमि इत्यादिक विकलेन्द्रिय जीव नहीं होते ॥ ३३१ ॥
१ द ब 'पदहत्यो.२द व अमरादिविवजिया. ३ व सोवाणो. ४ द ब पासादो. ५ द ब अविदावम.' ५दव भासतो. ७ द उत्तंगा. ८ द ब°कप्पदुमा. ९दब पउररायपलिह'. १० द सोहाणो.
TP. 24
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