Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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१५४ ]
तिलोयपण्णत्ती
[ ४.१००
उदीजुदसदभजिदे जंबूदीवस्स वासपरिमाणे । जं लद्धं तं रुंदं भरहक्खेसम्मि णादन्वं ॥ १०० पुष्वावरदो दीहा सत्त विखेत्ता अणादिविण्णासा । कुलगिरिकयमजादा वित्थिष्णा दक्खिणुत्तरदो ॥ १४१ भरद्दम्मि होदि एक्का तत्तो दुगुणा य चुल्लहिमवंते' । एवं दुगुणा दुगुणी होदि सलाया विदेहंतं ॥ १०२ १ । २ । ४ । ८ । १६ । ३२ । ६४ ।
अद्धं खु विदेहादो णी णीलादु रम्मके होदि । एवं अदाओ एरावदखेत्तपरियंतं ॥ १०३
३२ । १६ । ८ । ४ । २ । १ ।
वारसादीण सलाय मिलिदे णउदीयमधियमेक्कसयं । एसा जुत्ती हारस्स भासिदा आणुपुन्वी ॥ १०४ भागभजिदम्मि लद्धं पणसय छव्वीसजोयणाणि पि । छच्चियै कला य कहिदो भरहक्खेत्तम्मि बिक्खंभो ॥ १०५ ५२६ । ६ । १९
जम्बूद्वीप के विस्तारप्रमाणमें एकसौ नब्बैका भाग देनेपर जो लब्ध आवे उतना भरत क्षेत्रका विस्तार समझना चाहिये ॥ १०० ॥
सातों क्षेत्र पूर्व-पश्चिम में लंबे, अनादि रचनायुक्त ( अनादिनिधन ), कुलाचलोंसे सीमित, और दक्षिण उत्तरमें विस्तीर्ण हैं ॥ १०१ ॥
भरत क्षेत्र में एक शलाका है, क्षुद्र हिमवान् पर्वतकी शलाकायें भरत क्षेत्रसे दूनी हैं, इसीप्रकार विदेह क्षेत्रपर्यन्त शलाकायें दूनी दूनी हैं ॥ १०२ ॥
भरत १, हिम. २, हैम. ४, महा. ८, हरि १६, निषध ३२, विदेह ६४ ।
विदेह से आधी शलाकायें नील पर्वतमें और नील पर्वतसे आधी रम्यक क्षेत्रमें हैं । इसीप्रकारसे ऐरावत क्षेत्रपर्यन्त शलाकायें उत्तरोत्तर आधी आधी होती गई हैं ॥ १०३ ॥
नील ३२, रम्यक १६, रुक्मी ८, हैर. ४, शिखरी २, ऐरा. १.
क्षेत्रादिकों की शलाकायें मिलकर एकसौ नब्बे होती हैं । इसप्रकार अनुक्रमसे यह हार ( भाजक ) की युक्ति बतलायी गयी है ॥ १०४ ॥
१ +२+४+ ८ + १६ + ३२ + ६४ + ३२ + १६ + ८ + ४ +२+१= १९०
उपर्युक्त रीति से जम्बूद्वीप के विस्तार में एकसौ नब्बैका भाग देने पर लब्ध हुए पांचसौ छब्बीस योजन और छह कलाप्रमाण ( छह बटे उन्नीस ) भरत क्षेत्रका विस्तार कहा गया है ॥ १०५ ॥ जम्बूद्वीपका विस्तार १००००० ÷ १९० = ५२६६ यो. भरत क्षेत्रका विस्तार |
१ द ब हिमवतो. २ ब दुगुणदुगुणा ३ ब ललाया ४ द 'जोयणायं. ५ द ब छव्विह.
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