Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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१२२]
तिलोयपण्णत्ती
[३. ८६
तिटाणे सुषणाणि चउक्कअडसत्तणवचउक्कमे । सत्ताणीया मिलिदे भूदाणदस्स णायव्वा ॥ ८६
४९७८४०००। तेसट्टी लक्खाई पण्णास सहस्सयाणि पत्तेक्कं । सेसेसु इंदेसुं पढमाणीयाण परिमाणा ॥ ८७
६३५००००। चउठाणेसुं सुण्णा पंच य तिढाणए चउक्काणि । अंककमे सेसाणं सत्ताणीयाण परिमाणं ॥ ८८
४४४५००००। होति पयपणयपदी जेत्तियमेत्ता य सयलइंदेस । तप्परिमाणपरूवणउवएसो' णस्थि कालवसा ॥ ८९ किण्हा रयणसुमेघा देवीणामा सुकंदमभिधाणा । णिरुवमरूवधराओ चमरे पंचग्गमहिसीभो ॥९० अग्गमहिसीण ससमं असहस्साणि होति पत्तेकं । परिवारा देवीओ चाल सहस्साणि संमिलिदा ॥९१
८०००। ४००००। चमरम्गिममहिसीणं अट्ठसहस्सा विकुब्वणा संति । पत्तेक्कं अप्पसम णिरुवमलावण्णरूवेहिं ॥ ९२
तीन स्थानोंमें शून्य, चार, आठ, सात, नौ और चार, इन अंकोंके क्रमसे अर्थात् चार करोड़ सत्तानबै लाख चौरासी हजारप्रमाण भूतानन्द इन्द्र के मिलकर सात अनीक समझना चाहिये ॥८६॥
४९७८४०००। शेष सत्तरह इन्द्रोंमेंसे प्रत्येकके प्रथम अनीकका प्रमाण तिरेसठ लाख पचास हजारमात्र है ॥ ८७ ॥ ६३५०००० ।
चार स्थानोंमें शून्य, पांच और तीन स्थानोंमें चार, इसप्रकार अंकोंके क्रमसे, अर्थात् चार करोड चवालीस लाख पचास हजार, यह शेष इन्द्रोंमेंसे प्रत्येकके सात अनीकोंका प्रमाण होता है । ॥ ८८॥ ४४४५०००० ।।
सम्पूर्ण इन्द्रोंमें जितने प्रकीर्णक आदिक देव हैं, कालक वशसे उनके प्रमाणके प्ररूपणका उपदेश नहीं है ॥ ८९॥
चमरेन्द्रके कृष्णा, रत्ना, सुमेघा, देवी नामक और सुकंदा या सुकांता ( शुकाट्या) नामकी अनुपम रूपको धारण करनेवाली पांच अग्रमहिषियां होती हैं । ९०॥
अग्रदेवियों से प्रत्येकके अपने साथ आठ हजार परिवार-देवियां होती हैं । इसप्रकार मिलकर सब परिवार-देवियां चालीस हजारप्रमाण होती हैं ॥ ९१ ॥ ८००० x ५= ४००००।
__ चमरेन्द्रकी अग्रमहिषियोंमेंसे प्रत्येक अपने साथ, अर्थात् मूल शरीरसहित, अनुपम रूपलावण्यसे युक्त आठ हजारप्रमाण विक्रियानिर्मित रूपोंको धारण कर सकती है ॥ ९२ ॥
१ब अट्ठसत्त. २ द सत्ताणीआ. ३३चवटाणेसुं. ४द ब सत्ताणीयाणि, ५दब तप्परिमाणपरूणा.
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