Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
View full book text
________________
११८]
तिलोयपण्णत्ती
[ ३. ५८
जम्माभिसेयभूसणमेहुणओलंग्गमंतसालाहि । विविधाहिं रमणिज्जा मणितोरणसुंदरदुवारा ॥ ५८ सामण्णगब्भकदलीचित्तासणणालयादिगिहजुत्ता । कंचणपायारजुदा विसालवलहीविराजमाणा य॥ ५९ धुन्वंतधयवडाया पोक्खरणीवाविवसंडाहिं । सम्वे कीडणजुत्ता णाणावरमत्तवारणोपेता ॥ ६. . मणहरजालकवाडा णाणाविहसालभंजिकाबहुला । आदिणिहणेण हीणा किं बहुणा ते णिरुवमा णेया ॥ ६१ चउपासाणि तेसु विचित्तरूवाणि आसणाणि च । बररयणविरचिदाँणि सयणाणि हवंति दिव्वाणि ॥ ६२
। पासादा गढ़ा। एकेकसि इंदे परिवारसुरा हवंति दस एंदे । पडिइंदा तेत्तीसत्तिदसा सामाणीयदिसाइंदा ॥ ६३ तणुरक्खा तिप्परिसा सत्ताणीया पइण्णगभियोगा। किब्बिसया इदि कमसो पण्णिदा इंदपरिवारा ॥ ६४ इंदा रायसरिच्छा जुवरायसमा हुवंति पडिइंदा । पुत्तणिहा तेत्तीसत्तिदसा सामाणिया कलत्तसमा ॥ ६५ चत्तारि लोयपाला सावण्णा होति तंतवालाणं । तणुरक्खाण समाणा सरीररक्खा सुरा सब्वे ॥ ६६
मैथुनशाला, ओलगशाला (परिचर्यागृह) और मंत्रशाला, इन विविध प्रकारकी शालाओंसे रमणीय; मणिमय तोरणोंसे सुंदर द्वारोंवाले; सामान्यगृह, गर्भगृह, कदलीगृह, चित्रगृह, आसनगृह, नादगृह और लतागृह, इत्यादि गृहविशेषोंसे सहित; सुवर्णमय प्राकारसे संयुक्त; विशाल छज्जोंसे विराजमान; फहराती हुई ध्वजापताकाओंसे सहित; पुष्करिणी, वापी और कूप, इनके समूहोंसे युक्त; क्रीडनयुक्त; अनेक उत्तम मत्तवारणोंसे संयुक्त; मनोहर गवाक्ष और कपाटोंसे सुशोभित; नानाप्रकारकी पुत्तलिकाओंसे सहित और आदि-अन्तसे हीन अर्थात् अनादिनिधन हैं। बहुत कहनेसे क्या ? ये सब प्रासाद उपमासे रहित अर्थात् अनुपम हैं ऐसा जानना चाहिये ॥ ५७-६१ ॥
उन भवनोंके चारों पार्श्वभागोंमें विचित्र रूपवाले आसन और उत्तम रत्नोंसे रचित दिव्य शय्यायें स्थित हैं ।। ६२ ॥
प्रासादोंका कथन समाप्त हुआ। प्रतीन्द्र, त्रायस्त्रिंश देव, सामानिक, दिशाइन्द्र (लोकपाल), तनुरक्षक, तीन पारिषद, सात अनीक, प्रकीर्णक, आभियोग्य और किल्विषिक, ये दश प्रत्येक इन्द्रके परिवार देव होते हैं। इसप्रकार क्रमसे इन्द्रके परिवार देव कहे गये हैं ।। ६३-६४ ॥
इनमेंसे इन्द्र राजाके सदृश, प्रतीन्द्र युवराजके समान, त्रायस्त्रिंश देव पुत्रके सदृश और सामानिक कलत्रके तुल्य होते हैं ॥ ६५ ॥
चारों लोकपाल तंत्रपालोंके सदृश और सब तनुरक्षक देव राजाके अंगरक्षकके समान होते हैं ॥ ६६ ॥
१द ओलंग, ब उलग, २द बसालाइ. ३ दब विदिलाहिं. ४ ब सामेण. ५ब कूड. .६ द ब संडाई. ७ दब विरचिद्राणं. ८ दबदव्वाणिं. ९ द दस भेदा. १.० दब सावंता. ११ द ससरीरं, व सरीरं वा.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org