Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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२०]
तिलोयपण्णत्ती
[१.१५६
धूमपहाए हेट्ठिमभागम्मि समप्पदे तुरियरज्जू । तह पंचमिया रज्जू तमप्पहाहेहिमपएसे ॥ १५६
महतमहेट्ठिमयते छैट्टी हि समप्पदे रज्जू । तत्तो सत्तमरज्जू लोयस्स तलम्मि णिटादि ॥ १५७)
६। - ७ मज्झिमजगस्स उवरिमभागादु दिवट्टरज्जुपरिमाणं । इगिजायणलखूणं सोहम्मविमाणधयदंडे ॥ १५८
२४३ । रि. यो. १०००००। वञ्चदि दिवथरज्जू माहिंदसणक्कुमारउवरिम्मि । णिहादि अदरज्जू बंभुत्तरउभागम्मि ॥ १५९
१४३।४। । अवसादि अद्धरज्ज काविट्ठस्सोवरिटुभागम्मि । स चिय महसुकोवरि सहसारोवरि भस चेय॥१६०
तत्तो य म हरज्जू आणदकप्पस्स उवरिमपएसे । स य आरणस्स कप्पस्स' उवरिमभागम्मि गेविज ॥ १६१
इसके अनन्तर चौथा राजु धूमप्रभाके अधोभागमें और पांचवां राजु तमःप्रभाके अधोभागम समाप्त होता है ॥ १५६ ॥
रा. ४ । ५। पूर्वोक्त क्रमसे छठवां राजु महातमःप्रभाके अन्तमें समाप्त होता है, और इसके आगे सातवां राजु लोकके तलभागमें समाप्त होता है ॥ १५७ ।।
रा. ६।७। - मध्यलोकके ऊपरी भागसे सौधर्म विमानके ध्वजदण्डतक एक लाख योजन कम डेढ राजुप्रमाण उंचाई है ॥ १५८ ॥
रा. १३ ऋण--१००००० यो. । इसके आगे डेढ़ राजु माहेन्द्र और सानत्कुमार स्वर्गके ऊपरी भागमें समाप्त होता है । अनन्तर आधा राजु ब्रह्मोत्तर स्वर्गके ऊपरी भागमें पूर्ण होता है ॥ १५९॥
___इसके पश्चात् आधा राजु कापिष्टके ऊपरी भागमें, आधा राजु महाशुक्रके ऊपरी भागमें, और आधा राजु सहस्रारके ऊपरी भागमें समाप्त होता है ॥ १६० ॥
इसके अनन्तर अर्ध राजु आनत स्वर्ग के ऊपरी भागमें और अर्ध राजु आरण स्वर्गके ऊपरी
१ ब छट्रीहिं. २ द लक्खोणं. ३ द ब ११३ । १४ ३ . ४ ब अट्ररज्जूवमुत्तर', ५ द ब कप्पं सो ६ बगेवजं.
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