Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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७६ ]
तिलोयपण्णत्ती
चडजोयलक्खाणि छासट्टिसहस्सछसयछासट्ठी । दोण्णि कला तिमिसिंदयरुंद पंचमधरितीए । १५२
४६६६६६ । २ ।
३
तियजोयणलक्खाणिं सहस्सया पंचहत्तरिपमाणा । छट्टीए वसुमईए हिमहंदयरुंदपरिसंखा ॥ १५३
३७५००० ।
दो जोयलक्खाणि तैसीदिसहस्सतिसयतेत्तीसा । एक्ककला छट्ठीए पुढवीए होइ वद्दले रुंदो ॥ १५४
२८३३३३ । १ । ३
एक्कं जोयणलक्खा इगिणउदिसहस्सछ सयछासट्ठी । दोण्णि कला वित्थारो ललंके छट्टवसुहाए ॥ १५५
१९१६६६ । २ ।
३
वासो जोयलक्खो अवधिद्वाणस्स सत्तमखिदीए । जिणवरवयणविणिग्गदतिलोयपण्णत्तिणामाए ॥ १५६
१०००००।
एक्काधियखिदिसंखं तियचउसत्तेहिं गुणिय छन्भजिदे । कोसा इंदयसेढीपइण्णयाणं च बहलत्तं ॥ १५७
[ २. १५२
पांचवीं पृथिवीमें तिमिश्र नामक पांचवें इन्द्रकका विस्तार चार लाख छयासठ हजार छहसौ छयासठ योजन और एक योजनके तीन भागोमेंसे दो भागप्रमाण है ॥ १५२ ॥ ५५८३३३३ - ९१६६६३ = ४६६६६६३ ।
छठी पृथिवीमें हिम नामक प्रथम इन्द्रकके विस्तारका प्रमाण तीन लाख पचहत्तर हजार योजन है || १५३ || ४६६६६६३ - ९१६६६३ ३७५००० ।
छठी पृथिवीमें वर्दल नामक द्वितीय इन्द्रकका विस्तार दो लाख तेरासी हजार तीन सौ तेतीस योजन और एक योजनके तीसरे भागप्रमाण है ॥ १५४ ॥
-
३७५००० - ९१६६६ = २८३३३३
।
छठी पृथिवीमें लल्लंक नामक तृतीय इन्द्रकका विस्तार एक लाख इक्यानबै हजार छह सौ छयासठ योजन और एक योजनके तीन भागोंमेंसे दो भागप्रमाण है ॥ १५५ ॥
२८३३३३ - ९१६६६३ = १९१६६६३ ।
सातवीं पृथिवीमें अवधिस्थान नामक इन्द्रकका विस्तार एक लाख योजनप्रमाण है । इसप्रकार जिनेन्द्रदेवके वचनोंसे उपदिष्ट त्रिलोक - प्रज्ञप्ति में इन्द्रकबिलोंका विस्तार कहा गया है ॥ १५६ ॥ १९१६६६३ - ९१६६६३ = १००००० ।
एक अधिक पृथिवीसंख्याको तीन, चार और सातसे गुणा करके छहका भाग देने पर जो लब्ध आवे उतने कोसप्रमाण क्रमशः इन्द्रक, श्रेणीबद्ध और प्रकीर्णक बिलोंका बाहल्य होता है ॥ १५७ ॥
१ द ब वसुमाई. २ द ब वदलेसु. ३ द् अवदिठाणस्स ४ व सत्तेवि.
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