Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
View full book text
________________
१००
तिलोयपण्णत्ती
[२. २९२
आतुरिमखिदी चरमंगधारिणो संजदा य धूमंतं । छटुंतं देसवदा सम्मत्तधरा के चरिमंतं ॥ २९२
।आगमणवण्णमा सम्मत्ता । आउस्स बंधसमए सिलो व्व सेलो व वेणुमूले य । किमिरायकसायाणं उदयम्मि बंधेदि णिस्याऊ ॥ २९३ किण्हाय णीलकाऊणुदयादो बंधिऊण गिरयाऊ । मरिऊण ताहि जुत्तो पावइ णिरयं महाघोरं ॥२९४ किण्हादितिलेस्सजुदा जे पुरिसा ताण लक्खणं एदं । गोत्तं तह सकलतं एकं वंछेदि मारिदुं दुट्ठो ॥ २९५ धम्मदयापरिचत्तो अमुक्कवेरो पयंडकलहयरो। बहुकोहो किण्हाए जन्मदि धूमादिचरिमंते ॥ २९६ विसयासत्तो विमदी माणी विण्णाणवजिदो मंदो । अलसो भीरू मायापवंचबहुलो य णिहालू ॥ २९७ परवंचणप्पसत्तो लोहंधो धणसुहाकंखी । बहुसण्णा णीलाए जम्मदि तं चेव धूमंतं ॥ २९८ अप्पाणं मण्णंता अण्णं जिंदेदि अलियदोसेहिं । भीरू सोकविसण्णो परावमाणी यसूयी ॥२९९
चौथी पृथिवीतकके नारकी वहांसे निकलकर चरमशरीरी, धूमप्रभा पृथिवीतकके जीव सकलसंयमी और छठी पृथिवीतकके नारकी जीव देशव्रती हो सकते हैं । अन्तिम ( सातवीं ) पृथिवीसे निकले हुए जीवोंमें कोई विरले ही सम्यक्त्वके धारक होते हैं ॥ २९२ ॥
इसप्रकार आगमनका वर्णन समाप्त हुआ। आयुबन्धके समय सिलकी रेखाके समान क्रोध, शलके समान मान, बांसकी जड़के समान माया और कृमिरागके समान लोभ कषायका उदय होनेपर नरकायुका बन्ध होता है ।।२९३॥
कृष्ण, नील अथवा कापोत इन तीन लेश्याओंका उदय होनेसे नरकायुको बांधकर और मरकर उन्हीं लेश्याओंसे युक्त होकर महा भयानक नरकको प्राप्त करता है ॥ २९४ ॥
जो पुरुष कृष्णादि तीन लेश्याओंसे सहित है, उनका लक्षण यह है---कृष्ण लेश्यासे युक्त दुष्ट पुरुष अपने ही गोत्रीय तथा एकमात्र स्वकलत्रको भी मारनेकी इच्छा करता है ।। २९५ ॥
दया धर्मसे रहित, वैरको न छोड़नेवाला, प्रचंड कलह करनेवाला और बहुत क्रोधी जीव कृष्ण लेश्याके साथ धूमप्रभा पृथिवीसे लेकर अन्तिम पृथिवीतकमें जन्म लेता है ॥ २९६ ।।
_ विषयोंमें आसक्त, मतिहीन, मानी, विवेकबुद्धिसे रहित, मंद ( मूर्ख ), आलसी, कायर, प्रचुर मायाप्रपंचमें संलग्न, निद्राशील, दूसरोंके ठगनेमें तत्पर, लोभसे अन्ध, धन-धान्यजनित सुखका इच्छुक, और बहुसंज्ञायुक्त अर्थात् आहारादि चारों संज्ञाओंमें आसक्त, ऐसा जीव नील लेझ्याके साथ धूमप्रभा पृथिवीतकमें जन्म लेता है ॥ २९७-२९८ ॥
__ जो अपने आपकी प्रशंसा और असत्य दोषोंको दिखाकर दूसरोंकी निन्दा करता है, तथा जो भीरु, शोक व विषादसे युक्त, परका अपमान करनेवाला और इसेि संयुक्त है, जो कार्य
१८ बसिलोव्व सिलोव्व. २ दब प्रत्योः गाथेयं अग्रिमगाथायाः पश्चादुपलभ्यते, ३दन परिचित्तो. ४ द धण्णधणसुहाकंखी. ५ द व यसूया.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org