Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
View full book text
________________
- २. ३०८ ]
विदुओ महाधियारो
[ १०१
अमुणियकज्जाकज्जो धूवंतो परमपदे सहइ । अप्यं पिव मण्णतो परं पि कस्स वि ण पत्तिभइ ॥ ३०० थुवंतो देइ धणं मरिदुं वैछेदि समरसंघट्टे । काऊए संजुत्तो जम्गदि घम्मादिमेधंतं ॥ ३०१ | आउगबंधणपरिणामा सम्मत्ता ।
इंदयसेढीबद्धैप्पइण्णयाणं हवंति उवरिम्मि । बाहिं बहुलस्सिजुदा भद्धो वट्टा यधोमुहाकंठा ॥ ३०२ चेट्ठेदि जम्मभूमी सा घम्म पहुदिखेत्ततियम्मि । उट्टियैकोत्थलिकुंभीमोद्दलिमोग्गरमुइंगणालिणिहा ॥ ३०३. गोहत्थितुरयभत्थो अज्ज-पुडे अंबरीसदोणीओ । चउपंचमपुढवीसुं आयारो जम्मभूमीणं ॥ ३०४ झल्लरिमलयपत्थी केयूरमसूरसाणयकिलिंजा । धयदीविचकवायस्सिगालसरिसा महाभीमा ॥ ३०५ अज्जखर करहसरिसा संदोलअरिक्खसंणिहायारा । छस्सत्तमपुढवीणं दुरिक्खणिज महाघोरा ॥ ३०६ करवत्तसरिच्छाओ अंते वहा समंतदाऊ में । मज्जवमइवो णारयजम्मणभूमीओ भीमा य° ॥ ३०७ अजगजमहिसतुरंगमखरोट्ठमज्जालमेस पहुदीणं । कुथितीणं गंधादो णिरए गंधा अनंतगुणा ॥ ३०८
अकार्यको न समझकर चंचलचित्त होता हुआ परम पथका श्रद्धान करता है, अपने समान ही दूसरेको भी समझकर किसीका भी विश्वास नहीं करता है, स्तुति करनेवालोंको धन देता है, और समर संघर्ष में मरनेकी इच्छा करता है, एसा प्राणी कापोत लेश्यासे संयुक्त होकर घर्मासे लेकर मेघा पृथिवीतकमें जन्म लेता है । २९९-३०१ ॥
इसप्रकार आयुबंधक परिणामोंका कथन समाप्त हुआ ।
I
इन्द्रक, श्रेणीबद्ध और प्रकीर्णक बिलोंके ऊपर अनेक प्रकारकी तलवारोंसे युक्त, अर्धवृत्त और अधोमुखवाली जन्मभूमियां हैं । वे जन्मभूमियां घर्मा पृथिवीको आदि लेकर तीसरी पृथिवीतक उष्ट्रिका, कोथली, कुम्भी, मुद्गलिका, मुद्गर, मृदंग और नालिके सदृश हैं | ३०२-३०३ ॥ चतुर्थ और पंचम पृथिवीमें जन्मभूमियोंका आकार गाय, हाथी, घोड़ा, भस्त्रा, अब्जपुट, अम्बरीष और द्रोणी जैसा है ॥ ३०४ ॥
छठी और सातवीं पृथिवी की जन्मभूमियां झालर ( वाद्यविशेष ), मल्लक ( पात्रविशेष ), पात्री, केयूर, मसूर, शाणक, किलिंज ( तृणकी बनी बडी टोकरी ), ध्वज, द्वीपी, चक्रवाक, शृगाल, अज़, खर, करभ, संदोलक ( झूला ), और ऋक्ष ( रीछ ) के सदृश हैं । ये जन्मभूमियां दुष्प्रेक्ष्य एवं महा भयानक हैं | ३०५-३०६ ॥
उपर्युक्त नारकियोंकी जन्मभूमियां अन्तमें करोंत के सदृश, चारों तरफ से गोल, मज्जत्रमयी (!) और भयंकर हैं ॥ ३०७ ॥
बकरी, हाथी, भैंस, घोड़ा, गधा, ऊंट, बिलाव और मैढ़े आदिके सड़े-गले शरीरोंकी दुर्गन्धकी अपेक्षा नरकोंमें अनन्तगुणी दुर्गन्ध है ॥ ३०८ ॥
१ द ब परमपहइ सव्वहद्द. २ द बुंछेदि. ३ ब इंदियखेढी . ४ द उब्विय, ब उत्तिय'. ५ द ब अंतंपुढ. ६ .द 'चकवायासीगाल', ब चक्कचावासीगाल ७द सरिच्छसंदोलअ. ८ द धुरिक्खणिजा९ द समंतदाऊ. १० द व भीमाए. ११ द कुधिताणं.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org