Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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[२. १९६--
८१]
तिलोयपण्णवी वंसाए णारइया सेढीए असंखभागमत्ता वि । सो रासी सेढीए बारसमूलावहिदा सेढी ॥ १९६
मेघाए णारइया सेढीए असंखभागमेत्ता वि । सेढीए दसममूलेण भाजिदो होदि सो सेढी ॥ १९७
तुरिमाए णारइया सेढीए असंखभागमत्ता वि । सो सेढोए अट्टममूलेणं यवहिदा सेढी ॥ १९८
पंचमखिदिणारइया सेढीए असंखभागमेत्ते वि । सो सेढीए छ?ममूलेणं भाजिदा सेढी ॥ १९९
मघवीए णारइया सेढीए असंखभागमेत्ता वि । सेढीए तिदियमूलेण हरिदसेढी ये सो रासी ॥ २००
सत्तमखिदिणारइया सेढीए असंखभागमेत्ता वि । सेढीए बिदियमूलेण हरिदसेढीम सो रासी ॥ २०१
।एवं संखा समत्ता। वंशा पृथिवीमें नारकी जीव यद्यपि जगश्रेणीके असंख्यातभागमात्र हैं, तथापि उनकी राशिका प्रमाण जगश्रेणीके बारहवें वर्गमूलसे भाजित जगश्रेणीमात्र है ॥ १९६ ॥
श्रेणी + श्रेणीका १२हवां वर्गमूल = वंशा पृ. के नारकी ।
मेघा पृथिवीमें नारकी जीव जगश्रेणीके असंख्यातभागप्रमाण होते हुए भी जगश्रेणीके दशवें वर्गमूलसे भाजित जगश्रेणीप्रमाण है ॥ १९७॥
श्रेणी + श्रेणीका १०वा वर्गमूल = मेघा. पृ. के नारकी ।
चौथी पृथिवीमें नारकी जीव यद्यपि जगश्रेणीके असंख्यातभागमात्र हैं, तथापि उनका प्रमाण जगश्रेणीमें जगश्रेणीके आठवें वर्गमूलका भाग देनेपर जो लब्ध आवे, उतना है ॥ १९८॥
श्रेणी श्रेणीका ८वां वर्गमूल = चौथी पृ. के नारकी । पांचवीं पृथिवीमें नारको जीव जगश्रेणीके असंख्यातवें भागप्रमाण होकर भी जगश्रेणीके छठे वर्गमूलसे भाजित जगश्रेणीमात्र हैं ॥ १९९ ॥
श्रेणी श्रेणीका ६वां वर्गमूल = पांचवीं पृ. के नारकी। मघवी पृथिवीमें भी नारकी जीव जगश्रेणीके असंख्यातवें भागमात्र हैं, तथापि उनका प्रमाण जगश्रेणीमें उसके तीसरे वर्गमूलका भाग देनेपर जो लब्ध आवे, उतना है ॥२०॥
श्रेणी + श्रेणीका ३सरा वर्गमूल = छठी पृ. के नारकी ।
सातवीं पृथिवीमें यद्यपि नारकी जीव जगश्रेणीके असंख्यातवें भागप्रमाण ही हैं, तथापि उनकी राशिका प्रमाण जगश्रेणीके द्वितीय वर्गमूलसे भाजित जगश्रेणी है ।। २०१ ।। श्रेणी + श्रेणीका २सरा वर्गमूल = सातवीं पृ. के नारकी ।
___ इसप्रकार संख्या समाप्त हुई। १ द दसमूलेणं. २ द व हरिदा सेढीय.
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