Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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७४ ]
तिलोयपण्णत्ती
[२. १४०
पण्णारसलक्खाणि छस्सट्टिसहस्सछसयछासट्ठी। दोणि कला तदियाए संपजलिदस्स बित्थारो ॥ १४०
१५६६६६६ । २।
चोइसजोयणलक्खा पणसत्तरि तह सहस्सपरिमाणा । तुरिमाए पुढवीए आरिदयरुंदपरिमाणं ॥ १४१
१४७५०००। तेरसजोयणलक्खा तेसीदिसहस्सतिसयतेत्तीसं । एक्ककला तुरिमाए महीए मारिंदए रुंदो ॥ १४२
१३८३३३३ ।।
पारसजोयणलक्खा इगिणउदिसहस्सछसयछासट्ठी । दोणि कला तिविहत्ता तुरिमातारिंदयस्सै रुंदाउ ॥ १४३
१२९१६६६ । २।
बारसजोयणलक्खा तुरिमाए वसुंधराए वित्थारो। तचिंदयस्सै रुंदो णिद्दिट्ट सव्वदरिसीहिं ॥ १४४
१२०००००। एकादसलक्वाणि अट्ठसहस्साणि तिसयतेत्तीसा । एक्ककला तुरिमाए महीए तमगस्स वित्थारो ॥ १४५
११०८३३३ । ।
तीसरी पृथिवीमें संप्रज्वलितनामक नववे इन्द्रकका विस्तार पन्द्रह लाख च्यासठ हजार छहसौ छयासठ योजन और एक योजनके तीन भागोंमेंसे दो भागप्रमाण है ॥ १४०॥
१६५८३३३३ - ९१६६६३ = १५६६६६६३ । चतुर्थ पृथिवीमें आर नामक प्रथम इन्द्रकके विस्तारका प्रमाण चौदह लाख पचहत्तर हजार योजन है ॥ १४१ ॥ १५६६६६६३ - ९१६६६३ = १४७५००० ।
चतुर्थ पृथिवीमें मार नामक द्वितीय इन्द्रकका विस्तार तेरह लाख तेरासी हजार तीनसौ तेतीस योजन और एक योजनके तीसरे भागप्रमाण है ॥ १४२ ॥
१४७५००० - ९१६६६३ = १३८३३३३३। चतुर्थ पृथिवीमें तार नामक तृतीय इन्द्रकका विस्तार बारह लाख इक्यानबै हजार छहसौ च्यासठ योजन और एक योजनके तीन भागोंमेंसे दो भागप्रमाण है ॥ १४३ ॥
१३८३३३३३ - ९१६६६३ = १२९१६६६३ । सर्वज्ञदेवने चतुर्थ पृथिवीमें तत्व (चर्चा) नामक चतुर्थ इन्द्रकका विस्तार बारह लाख्न योजनप्रमाण बतलाया है ॥ १४४ ॥ १२९१६६६३ - ९१६६६३ = १२००००० ।।
चतुर्थ पृथिवीमें तमक नामक पंचम इन्द्रकका विस्तार ग्यारह लाख आठ हजार तीनसौ तेतीस योजन और एक योजनके तीसरे भागप्रमाण है ॥ १४५ ॥
१२००००० - ९१६६६३ = ११०८३३३३ ।
१ द ब तदिएसं. २ द ब तुरिमाइंदस्स. ३ द ब तभंतयस्स. ४ द.
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