Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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७२] तिलोयपण्णसी
[२. १२८छन्वीस लक्खाणि छासविसहस्सछसयछासहि । दोण्णि कला तिविहत्ता जिब्भगणामस्स विस्थारो ॥ १२८
२६६६६६६।२।
पणुवीसं लक्खाणि जोयणया पंचसत्तरिसहस्सा । लोलिंदयस्स रुंदो बिदियाए होदि पुढवीए ॥ १२९
२५७५०००। चउवीसं लक्खाणि तेसीदिसहस्सतिसयतेत्तीसा । एक्ककला तिविहत्ता लोलगणामस्सै वित्थारो॥१३०
२४८३३३३ । ।
तेवीसं लक्खाणि इगिणउदिसहस्सछसयछासट्ठी । दोणि कला तियभजिदा रुंदा थणलोलगे होंति ॥ १३१३
२३९१६६६ ।।
तेवीसं लक्खाणि जोयणसंखा य तदियपुढवीए । पढमिदयम्मि वासो णादग्दो तसणामस्स ॥ १३२
बावीसं लक्खाणि असहस्साणि तिसयतेत्तीसं । एककला तिविहत्ता पुढवीए तसिदवित्थारो ॥ १३३
२२०८३३३ । ।
जिह्वक नामक आठवें इन्द्रकका विस्तार छब्बीस लाख छयासठ हजार छहसौ छयासठ योजन और एक योजनके तीन भागोंमेंसे दो भागप्रमाण है ॥ १२८ ॥
२७५८३३३३ - ९१६६६३ = २६६६६६६२ । द्वितीय पृथिवीमें नववे लोल इन्द्रकका विस्तार पञ्चीस लाख पचहत्तर हजार योजनप्रमाण है ॥ १२९ ॥ २६६६६६६३ - ९१६६६३ = २५७५०००।
लोलक नामक दश इन्द्रकका विस्तार चौबीस लाख तेरासी हजार तीनसौ तेतीस योजन और एक योजनके तीसरे भागप्रमाण है ॥ १३० ॥ २५७५००० - ९१६६६३ = २४८३३३३३ ।
स्तनलोलक नामक ग्यारहवें इन्द्रकका विस्तार तेईस लाख इक्यानबै हजार छहसौ छयासठ योजन और योजनके तीन भागोंमेंसे दो भागप्रमाण है ॥ १३१ ॥
२४८३३३३३ - ९१६६६३ %= २३९१६६६३ । तीसरी पृथिवीमें तप्त नामक प्रथम इन्द्रकका विस्तार तेईस लाख योजनप्रमाण जानना चाहिये ॥ १३२ ॥ २३९१६६६२ -- ९१६६६३ = २३००००० ।
तृतीय पृथिवीमें त्रसित नामक द्वितीय इन्द्रकका विस्तार बाईस लाख आठ हजार तीनसौ तेतीस योजन और योजनका तीसरा भाग है ॥ १३३ ॥
२३००००० - ९१६६६३ =२२०८३३३ ।
१ द छावडिं. २ द लोलगणामास'. ३ ब पुस्तक एव.
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