Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
View full book text
________________
२६]
तिलोयपण्णत्ती
[ १. १८४
रज्जुस्स सत्तभागो तियछदुपंचेक्कचउँसगेहि हदा । खुल्लयभुजाण रुंदा वंसादी थंभबाहिरए ॥ १८४
लोयंते रज्जुघणा पंच चिय अद्धभागसंजुत्ता । सत्तमखिदिपजंता अडाइज्जा हवंति फुडं ॥ १८५
३४३।२ |३४३३२ उभयसि परिमाणं बाहिम्मि अब्भंतरम्मि रज्जुघणा । छ?क्खिदिपेरंता तेरस दोरुवपरिहत्ता ॥ १८६
३४३२ बाहिरछन्भाएK अवणीदेसं हवेदि अवसेसं । सतिभागछक्कमत्तं तं चिय अभंतरं खेसं ॥१८७
३.३।६ | ३४३।६। आहट्टं रज्जुघणं धूमपहाए समासमुद्दिढ । पंकाए चरिमंते इगिरज्जघणा तिभागूणं ॥ १८८
राजुके सातवें भागको तीन, छह, दो, पांच, एक, चार और सातसे गुणा करनेपर वंशा आदिकमें स्तम्भोंके बाहिर छोटी भुजाओंके विस्तारका प्रमाण निकलता है ॥ १८४ ॥
लोकके अन्ततक अर्ध भाग सहित पांच धनराजु और सातवीं पृथिवीतक ढाई घनराजुप्रमाण घनफल होता है ॥ १८५॥
+ २४१४७ = १ घनराजु; +3+२४१४७= ५ घ.रा.
छठवीं पृथिवीतक बाह्य और आभ्यन्तर दोनों क्षेत्रोंका मिश्र घनफल दोसे विभक्त तेरह धनराजुप्रमाण है ॥ १८६॥
+५ २४१४७= १३ घ. रा.
छठवीं पृथिवीतक जो बाह्य क्षेत्रका घनफल एक बटे छह (2) घनराजु होता है, उसे उपर्युक्त दोनों क्षेत्रोंके जोडरूप घनफल (१३ घ. रा.) मेंसे घटा देनेपर शेष एक त्रिभाग (1) सहित छह घनराजुप्रमाण आभ्यन्तर क्षेत्रका घनफल समझना चाहिये ॥ १८७ ।।
२४ ३४७= १ घ. रा. बाह्य क्षेत्रका घनफल; १३३ -= ३६ घ. रा. अभ्यन्तर क्षेत्रका घनफल ।
___ धूमप्रभापर्यन्त घनफलका जोड़ साढ़े तीन घनराजु बतलाया गया है । और पंकप्रभाके अन्तिम भागतक एक त्रिभाग (३) कम एक घनराजु प्रमाण घनफल है ॥ १८८॥
५+ २४१४७ = घ. रा.;:२४३४७ = ३३. रा. बाह्य क्षेत्रका घनफल ।
१ द चउसगहि. २ द ब बाहिरछन्भासेसुं. ३ द ब अवसेसुं. ४ द ब =
६.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org