Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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-२.२३ ]
बिदुओ महाधियारो
तण्णामा वेरुलियं लोहिययंक' असारगल्लं च । गोमज्जयं पवालं जोदिरसं अंजणं णाम ॥ १६ अंजणमूलं अंकं फलिहचंदणं च वच्चगयं । बहुला सेला एदो पत्तेक इगिसहस्सबद्दलाई ॥ १७ ताण खिदीणं ट्ठा पासाणं णाम रयणसेलसमैा । जोयणसहस्सबद्दलं वेत्तासणसणिहार्डे संठाभो ॥ १८ पंकाजिरो य दीसदि एवं पंकबहुलभागो वि । अप्पबहुलो वि भागं सलिलसरूवस्सवो होदि ॥ १९ एवं बहुविहरग्रणप्पयारभरिदो विराजदे जम्हा । रयणप्पहोति' तम्हा भणिदा णिउणेहिं गुणणामा ॥ २० सक्करवालुवपंका धूमतमा तमतमं च समचरियं । जेणं' अवसेसावो छप्पुढचीओ वि गुणणामा ॥ २१ बत्तीसट्टावीसं चडवीस वीस सोलसटुं च । हेट्ठिमछप्पुढवीणं बहलत्तं जोयणसहस्सा ॥ २२
३२००० | २८००० | २४००० | २०००० | १६००० । ८००० ।
विगुणिय छच्चउसट्टीसही उणसट्ठिर्भद्वचउवण्णा । बहलत्तणं सहस्सा हेट्ठिमपुढवीयछष्णं पि ॥ २३
वैडूर्य, लोहितांक ( लोहिताक्ष ), असारगल्ल ( मसारकल्पा), गोमेदक, प्रवाल, ज्योतिरस, अंजन, अंजनमूल, अंक, स्फटिक, चन्दन, वर्चगत ( सर्वार्थका ), बहुल ( बकुल ) और शैल, ये उन उपर्युक्त चौदह पृथिवियोंके नाम हैं । इनमेंसे प्रत्येककी मुटाई एक हजार योजन है ॥ १६–१७॥
इन पृथित्रियोंके नीचे एक पाषाण नामकी ( सोलहवीं) पृथिवी है, जो रत्न शैलके समान है । इसकी मुटाई भी एक हजार योजनप्रमाण है । ये सब पृथिवियां वेत्रासन के सदृश स्थित हैं ॥ १८ ॥ इसी प्रकार पंकबहुलभाग भी है जो पंकसे परिपूर्ण देखा जाता है । तथैव अब्बहुल भाग जलस्वरूपके आश्रय से है ॥ १९ ॥
इसप्रकार क्योंकि यह पृथिवी बहुतप्रकार के रत्नोंसे भरी हुई शोभायमान होती है, इसीलिये निपुण पुरुषोंने इसका 'रत्नप्रभा' यह सार्थक नाम कहा है ॥ २० ॥
रत्नप्रभा पृथिवीके नीचे शर्कराप्रभा, वालुकाप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमःप्रभा और तमस्तमःप्रभा ( महातमःप्रभा ) ये शेष छह पृथिवियां क्रमशः शक्कर, वालु, कीचड, धूम, अंधकार और महान्धकारकी प्रभासे सहचरित हैं, इसीलिये इनके भी उपर्युक्त नाम सार्थक हैं ॥ २१ ॥
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इन छह अधस्तन पृथिवियोंकी मुटाई क्रमसे बत्तीस हजार, अठ्ठाईस हजार, चौबीस हजार, बीस हजार, सोलह हजार और आठ हजार योजनप्रमाण है | २२ ॥
श. प्र. ३२०००, वा. प्र. २८०००, पं. प्र. २४०००, धू. प्र. २००००, त. प्र. १६०००, म. प्र. ८००० योजन.
छ्यासठ, चौंसठ, साठ, उनसठ, अठ्ठावन, और चौवन, इनके दुगुणे हजार अर्थात् एक लाख बत्तीस हजार, एक लाख अट्ठाईस हजार, एक लाख बीस हजार, एक लाख अठारह हजार, एक लाख सोलह हजार, और एक लाख आठ हजार, योजनप्रमाण उन अधस्तन छह पृथिवियों की मुटाई है ॥ २३ ॥
१ [ लोहिययक्खं मसार° ]. २ द ब सेलं इय एदाई. ३ ब रयणसोलसम. ५ द दिसदि एदा एवं, व दिसदि एवं. ६ [ रयणप्पह त्ति ]. ७ द ब जेतं. ८ द व दुविसट्ठि.
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४ द ब सणिहो.
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