Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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[विदुओ महाधियारो]
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६ अजियजिणं जियमयण दुरितहरं आजवंजवातीदं । पणमिय णिरूवमाणं णारयलोयं णिरूवेमो ॥. णिद्धयणिवासखिदिपरिमाणं आउदयओहिपरिमाणं । गुणठाणादीणं च य संखा उप्पजमाणजीवाणं ॥२ जम्मणमरणाणतरकालपमाणादि एकसमयम्मि । उप्पजणमरणाण य परिमाणं तह य आगमणं ॥३ णिरयगदिभाउबंधणपरिणामा तह य जम्मभूमीओ । णाणादुक्खसरूवं दंसणगहणस्स हेदु जोणीओ ॥ ४ एवं पण्णरसविहा यहियारा वण्णिदा समासेण । तित्थयरवयणणिग्गयणारयपण्णत्तिणामाए ॥५ लोयबहुमज्झदेसे तरुम्मि सारं व रज्जुपदरजुदा । तेरसरज्जुच्छेहा किंचूणा होदि तसणाली ॥ ६ ऊणपमाणं दंडा कोडितियं एकवीसलक्खाणं । बासद्धिं च सहस्सा दुसया इगिदाल दुतिभाया ॥७
३२१६२२४१।२।
अथवाउववादमारणंतियपरिणदतसलोयपूरणेण गदो। केवलिणो अवलंबिय सन्वजगो होदि तसणाली ॥८
जिन्होंने मदन अर्थात् कामदेवको जीत लिया है, पापको नष्ट कर दिया है, तथा जो संसारसे अतीत हैं अर्थात् मोक्षको प्राप्त कर चुके हैं और अनुपम हैं, ऐसे अजित भगवान्को नमस्कार करके नारकलोकका निरूपण करते हैं ॥१॥
एक ही घरमें रहने वालों अर्थात् नारकियोंकी निवास-भूमियोंका वर्णन, परिमाण अर्थात् नारकियोंकी संख्या, आयुका प्रमाण, शरीरकी उंचाईका प्रमाण, अवैधिज्ञानका प्रमाण, गुणस्थानादिकोंका निर्णय, नरकोंमें उत्पद्यमान जीवोंकी व्यवस्था, जन्म और मरणके अन्तरकालका प्रमाणादिक एक समयमें उत्पन्न होनेवाले और मरनेवाले जीवोंका प्रमाण, नरकसे निकलनेवाले जीवोंका वर्णन, नरकगतिसम्बन्धी आयुके बंधक परिणामोंका विचार, जन्मस्थानोंका कथन, नानौ दुःखोंका स्वरूप, सम्यग्दर्शनग्रहणके कारण, और नरकमें उत्पन्न होनेके कारणोंका कथन, इसप्रकार ये पन्द्रह अधिकार तीर्थंकरके वचनसे निकले इस नारकप्रज्ञप्तिनामक महाधिकारमें संक्षेपसे कहे गये हैं ॥२-५॥
जिसप्रकार वृक्षके ठीक मध्यभागमें सार हुआ करता है, उसीप्रकार लोकके बहुमध्यभाग अर्थात् बीचमें एक राजु लंबी-चौड़ी और कुछ कम तेरह राजु ऊंची त्रसनाली ( त्रसजीवोंका निवासक्षेत्र ) है ॥६॥
___ त्रसनालीको जो तेरह राजुसे कुछ कम ऊंचा बतलाया गया है, उस कमीका प्रमाण यहां तीन करोड, इक्कीस लाख, बासठ हजार, दोसौ इकतालीस धनुष और एक धनुषके तीन भागोंमेंसे दो भाग अर्थात् ३ है ||७|| सनालीकी उंचाई- ३२१६२२४१३ धनुष कम १३ राजु. .
अथवा- उपपाद और मारणांतिक समुद्घातमें परिणत त्रस तथा लोकपूरणसमुद्घातको प्राप्त केवलीका आश्रय करके सारा लोक ही त्रसनाली है ॥८॥
__विशेषार्थ- विवक्षित भवके प्रथम समयमें होनेवाली पर्यायकी प्राप्तिको उपपाद कहते
१ द ब णिद्धई.
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