Book Title: Tiloy Pannati Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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-१. १९२]
पढमो महाधियारो
[२७
रज्जुघणा सत्त चिय छब्भागूणा चउत्थपुढवीए । अभंतरम्मि भागे खेत्तफलस्स पमाणमिदं ॥ १८९
रज्जुघणद्धं णवहदतदियखिदीए दुइजभूमीए । होदि दिवड्वाए दो मेलिय दुगुणं धणो कुजा ॥ १९०
३४३।२।३४३।२] दुगुणिदे = ६३ ।
३४३ तेत्तीसब्भहियसयं सवच्छेत्ताण सम्बरज्जुयाण । ते ते सम्वे मिलिदा दोण्णि सया होति चउहीणा ॥ १९१
__ = १३३| मिलिदे = १९६ |
३४३ एक्केकरज्जुमेत्ता उवरिमलोयस्स होति मुहवासा । हेटोवरि भूवासा पण रज्जू सेविअन्द्वमुच्छेहो ॥१९२
भू। ।३। ।
चतुर्थ पृथिवीपर्यन्त अभ्यन्तर भागमें घनफलका प्रमाण एक बटे छह (2) कम सात धनराजु है ॥ १८९॥
+ : २४१४७ - ३ = ४१ घ. रा. आभ्यन्तर क्षेत्रका व. फ
अर्ध ( ३ ) घनराजुको नौसे गुणा करनेपर जो गुणनफल प्राप्त हो, उतना तीसरी पृथिवीपर्यन्त क्षेत्रके घनफलका प्रमाण है, और दूसरी पृथिवीपर्यन्त क्षेत्रका घनफल डेढ घनराजुप्रमाण है। इस सब घनफलको जोड़कर दोनों तरफके घनफलको लाने केलिये उसे दुगुणा करना चाहिये ॥ १९०॥
+३२४१४७ = ३ घ. रा.; २४१ x ७ = ३ घ. रा. योग-१+५+३+३+२+३+++३=१६, १६° ४२== २४ =६३ घनराजु ।
उपर्युक्त घनफलको दुगुणा करनेपर दोनों (पूर्व-पश्चिम ) तरफका कुल घनफल त्रेसठ घनराजुप्रमाण होता है । इसमें सब अर्थात् पूर्ण एक राजुप्रमाण विस्तारवाले समस्त ( १९) क्षेत्रोंका घनफल जो एकसौ तेतीस घनराजु है, उसे जोड देनेपर चार कम दोसौ अर्थात् एकसौ छ्यानबै धनराजुप्रमाण कुल अधोलोकका घनफल होता है । १९१ ॥
६३+१३३=१९६ धनराजु । ऊर्ध्वलोकके नीचे व ऊपर मुखका विस्तार एक एक राजु, भूमिका विस्तार पांच राजु, और उंचाई ( मुखसे भूमितक ) जगश्रेणीके अर्द्धभाग अर्थात् साढ़े तीन राजुमात्र है ॥ १९२ ॥
ऊपर व नीचे मुख १; भूमि ५; उत्सेध- भूमिसे नीचे ३३; ऊपर ३३ राजु ।
१ दब तदीय. २ ब तेत्तीसम्महियछेत्ताण. द तेत्तीसब्भहियसयं सयछेत्ताण.
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