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आर्य सुधर्मा से लोकाशाह तक इनकी आयु मर्यादा अविश्वस्नीय लगती है। अत: इनके जन्म, दीक्षा आदि की तिथियाँ भित्र होनी चाहिये। आर्य नागेन्द्र (नागहस्ती)
इनके जीवनवृत्त के विषय में विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं होती है। दुषमाकाल श्रमणसंघ स्तोत्र के अनुसार इनका दीक्षाकाल वी०नि० ५९२-९३ माना जाता हैं। यद्यपि आर्य नागेन्द्र और आर्य नागहस्ती के विषय में मतवैभिन्नयता देखने को मिलती है। कुछ लोग दोनों को एक ही मानते हैं तो कुछ लोग दोनों को अलग-अलग स्वीकार करते हैं। आचार्य हस्तीमलजी ने इन्हें भिन्न स्वीकार किया है। उनके अनुसार आचार्य नागहस्ती वाचकवंश परम्परा के आचार्य थे। जिनके गुरु आर्य नन्दिल थे। जबकि नागेन्द्र युगप्रधान परम्परा के आचार्य और आर्य वज्रसेन के शिष्य थे। ‘बोधप्राभृत' की श्रुतसागरीय टीका के आधार पर वे लिखते हैं- वाचक नागहस्ती और युगप्रधान नागेन्द्र की भिन्नता इस तथ्य से भी प्रमाणित होती है कि आर्य नागहस्ती का दिगम्बर परम्परा के साहित्य में भी यति वृषभ के गुरु के रूप में उल्लेख मिलता है, पर आर्य नागेन्द्र को संशयी मिथ्यादृष्टि, श्वेताम्बर आदि विशेषणों से अभिहित किया गया है।' ६९ वर्ष तक युगप्रधानाचार्य पद को सुशोभित करते हुये वी०नि०सं० ६८९ में ये स्वर्गस्थ हुये। आर्य, रेवतीमित्र
आर्य नागेन्द्र के पश्चात् आर्य रेवतीमित्र युग प्रधानाचार्य पद पर सुशोभित हुये। इनके जीवन के विषय में कोई विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं होती है। विद्वानों की ऐसी मान्यता है कि आर्य रेवतीमित्र और आर्य रेवतीनक्षत्र दोनों एक ही है। किन्तु दोनों के स्वर्गगमन का जो वर्ष ज्ञात होोत है उसमें १०० वर्षों का अन्तर है। वाचनाचार्य रेवती नक्षत्र का स्वर्गगमन वी०नि० ६४०-६५० के आस-पास माना जाता है जबकि युगप्रधानाचार्य आर्य रेवतीमित्र का समय वी०नि०सं० ७४८ माना गया है। आर्य सिंहगिरि
इनका जन्म वी०नि० सं० ७१० में हुआ। १८ वर्ष की आयु में वी०नि० सं० ७२८ में इन्होंने दीक्षा ग्रहण की। इनके विषय में कोई स्पष्ट जानकारी प्राप्त नहीं होती है कि ये किसके शिष्य थे और किस कल के थे। युगप्रधानाचार्य की परम्परा में 'कल्पसूत्र' स्थविरावली में स्थविर आर्य धर्म के शिष्य के रूप में आर्य सिंहगिरि का उल्लेख आया है और इन्हें काश्यप गोत्रीय बताया गया है। एक अन्य आर्य सिंहगिरि का उल्लेख भी आता है जो वाचनाचार्य पद पर समासीन थे और स्कन्दिलाचार्य के गुरु थे। इस सम्बन्ध में विशेष शोध की आवश्यकता है। २० वर्ष तक सामान्य साधुपर्याय और ७८ वर्ष तक युगप्रधानाचार्य के रूप में जीवन व्यतीत कर वी०नि० सं० ८२६ में ये स्वर्गस्थ हुये।
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