Book Title: Sthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Author(s): Sagarmal Jain, Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 521
________________ ५०२ स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास तथा व्यवहार नी प्रथमोद्देशके – “परिहार कप्पट्टिते भिक्खू"- इत्यादि ए शब्द नी वर्त्ति मध्ये वृत्ति नल दाम कौली नी कथा छइ, ते लिखीइ छइ-एकई राजाई कहिउंमुझ संघातइं विवाद करउ, तिवारि ते राजा नइ अनुकूल वचनइं प्रति बोधिइ। तेइ नइ कहइतुम्हो ए पृथिवीपति, तुम्ह संघाति विवाद न कीजइ। इम करतां न रहइ तउ तेहनां सजन नई प्रति बोधइ। तेह - वायं न करइ तउ विद्यादिकइ वश्य करइ। इम न रहइ तउ चारित्र मुंकी गृहस्थ पणुं अंगीकार करी नई तिम करवू जिम ते राजा न भवति। इम करइ तउ पणि प्रवचन नी अर्थि शुद्ध तिम ते राजा उपाउq । तेह नइ विषइ चाणक्य नल दाम नुं दृष्टान्तचाणक्यई नंद नई उथापी चन्द्रगुप्त नइ राजाथापइ। नंद ना जे गोठी, ते चोरी करइ। कोटवाल संघाति मिलि नई पछइ चाणक्यइ नगर मांहिं फिरतइ। नलदाम नुं पुत्र कोंडइ खाधुं, ते बाप पासइ आव्यु। पछइ नलदाम इं मकोडा सर्व मार्या, बिल खणी जे अंडा दीठां ते मार्या, अग्नि ते ऊपरि बालिनइ। तेहनइं पूछ्यूंपछइ ते कोटवाल थाप्यु। पछइ तेहनइ चौर मल्या। तेणि वेमासी नइ सर्व नइं पुत्र सहित जीमावी नइ मार्या । एहवं मस करी नई जिम यथा चाणक्येन नन्दोत्पाटितः, यथा च नलदामई मंकोडा अनइ चोर समूलं उच्छेद्या तिम प्रवचन द्वेषी राजा नइ मूल थी विणासवू । तिहां जे उत्पाटइ, जे तेहनई साहिज्य द्यइ, जे तेहनइं अनुमोदइ-ते सर्व शुद्धाः । प्रवचन उपघात राखवा नइ काजई ते भणी न नि:केवल शुद्धिमानं किन्तु अचिरान्मोक्ष गमनं होइ । इहां दृष्टांत विष्णुकुमार नुं जोवु नइ श्री सिद्धांतइं इम कह्यं जे राज नइ मारइ तेह नइ महा मोहनीय कर्म बंघाइ। अनि वृत्ति मध्ये इम कर्दा-जउ कारण इ परिवार सहित राजान नई मारइ ते शुद्ध अनइ थोड़ा काल मांहिं मोक्ष-ते भणी डाहु हुइ ते विचारज्यो ।।२७|| तथा आवश्यकनियुक्ति मध्ये “परिठावणिया समिति" मांहिं कहिउं छइ ते यती नइ उतावलुं कार्य पडइ तिवारि सचित्त पृथिवी अदत्त पणि ग्रहइ॥२८॥ तथा कार्य शीघ्र हुइ तिवारइ सचित्त जल अदत्त पणि लेवु-एहवा अघटता छै अनइ सिद्धान्ते सचित्त जल निषेध्यां छै–ते भणी डाहु हुई ते विचारज्यो ।।२९।। तथा कार्य पड़इ तिवारि दीवु अणवु, कार्य पूरा थयां पछइ वाटि निचोवी।।३०॥ इम वायु नुं पणि आरम्भ कहइ- मसक वायु भरी लीयइ ॥३१॥ तथा कारणइं ग्लानादिक नई सचित्त कंदादि अदत्त लीइ जे आवश्यकनियुक्ति मांहिं एहवा अयुक्ता बोल छइ, ते चउद पूर्वी नी कीधी किम मानीइ ॥३२॥ तथा वली कह्यु छइ-कारणइ नपुंसक नइ दीक्षा देवी अनइ अनेरा पाठ भणाव, अनइ ते भणइ तिवारिं बीजा साधु तेह प्रति झूठू बोलइ-कहि-अमेपण इमज भण्यु हतुं, इम चोरी राखी नइ तिवारिं इम झूठू बोलइ साधु, पछइ कार्य पूरइ थयइ, बाहिर काढq । पछइ ते दीवांणइ जाइ, तिवारिं झूढू बोलवू कां "अम्हो एह नई दीक्षा दीधी नथी, एह नई माथइ चोटी, एह नई पाठ अनेरू Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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