Book Title: Sthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Author(s): Sagarmal Jain, Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 543
________________ ५२४ स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास एह तीर्थ सिद्धान्त माहिं किहाइं न बोलियां, तु इम जाणिवउं एह तीर्थ न हुई । एह छत्रीसमु बोला ३७. सांत्रीसमुं बोल ___हवइ सांत्रीसमु बोल लिखीइ छइ। ठवणहारि लाकड़ा, सूर्यकान्तिनु अकिखनु वराड़नु- एहनी प्रतिष्ठा करीनइ थापनाचार्य करी थापइ छ । आचार्य ना गुण छत्रीस, अथवा वली ज्ञान-दर्शन-चारित्र-तप । एहनु तु एकइ गुण ठवणहारि माहिं दीसतो नथी। जि वारइं न हतु प्रतिष्ठयउ तिवारइ जेहq हतु अनइ प्रतिष्ठिउ पणि तेहवु दीसइ छइ। ठवण हारि माहिं पहिलं अनइ पछइ गुण दीसता नथी। थापनाचार्य थापीनइ तेह आगलि अनुष्ठान करइ छइ, खमासमण देइनइ वांछइ छइ, अनइ वली तेह जि ठवणहारीनई पूठि देइनइ बइसइ छई, तु ते आशातना नथी हती, तेहनई पूठि देइनइं किम बइसइ? एह तु विपरीत उपराहु दीसइ छइ। एह सांत्रीसमु बोल। ३८. अठत्रीसमु बोल __ हवइ अठत्रीसमु बोल लिखीइ छड्। श्री अरिष्टनेमिनइ वारइ पांच पांडव हुआ इम कहई छई। पांडवइ शत्तुंजा ऊपरि उद्धार कराव्यु, प्रासाद प्रतिमा करावी, अनइ तेणइ जि वारइं- श्री थावच्चापुत्त अणगार १००० परिवार संघातिइं शुक अणगार १००० परिवार संघातिइं, सेलग राजर्षि अणगार ५०० संघातिइं, अनइ पांच पांडवना कुमर चारित्र लेइनइ सेजा ऊपरि अणसण कीधां। भावपूजा न कीधी प्रतिमा आगलि तउ इम जाणीइ छइतेणइं वारइं प्रतिमा प्रासाद नुहता। अनइ वली इम कहई छई-"श्री आदिनाथ सेजा ऊपरि पूर्व नवाणुं वार चडया।" तेह कीहा सिद्धान्त माहिं कहिआ छई, ते देखाड़छ। एह अठत्रीसमु बोल। ३९. ओगुणच्चालीसमु बोल हवइ ओगुणच्चालीसमु बोल लिखीइ छइ। तथा इम कहई छइं- सेजा ऊपरि घणा सीधा, तेह भणी तीर्थ कहीइ।” अनइ धणा सीधा भणी तीर्थ कहीइ तु अढाइ द्वीप पीस्तालीस लाख योजणमांहिं तेह ठाम नथी, जेह बालाग्र ठाम थकी अनंता सीधा नथी। "जत्थ एगो सिद्धो, तत्थ अनंता सिद्धा। इम तु अढाइ द्वीप सघलुं तीर्थ जाणिवू। सेर्बुजउ तीर्थ किहां नथी कहिउ। एह ओगुणच्चालीसमु बोल। ४०. च्यालीसमु बोल हवइ च्यालीसमु बोल लिखीइ छइ। श्री भगवती माहिं श्री महावीरनइं श्री गौतमई पूछिउं छइं-सनत्कुमार इन्द्र त्रीजा देवलोकनु “सणंकुमारे णं भंते देविन्दे देवराया किं भवसिद्धीए, अभवसिद्धीए, सम्मदिट्ठी, मिच्छदिट्ठी, परित्तसंसारी, अणंतसंकसंसारी, सुलहबोही, दुलहबोही, आराहए, विराहए, चरिमे, अचरिमे?" गोयमा! सणंकुमारे भवसिद्धि, सम्मदिट्ठी, परित्तसंसारी, सुलहबोही, आराहए, चरमे। से केणटेणं भंते एवं वुच्चइ? “गोयमा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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