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नदीकांत ते नोउत्तरमा बजी। जो नदी तरेधर्महोय तो बऊस्पेनउतरे श्री वीतरागें तो नदी उतरवानासंष्पा बो ली खातथा श्री समवायेंगें। एकवीस मे समवाशतघा दशाश्रुतरकं धूमध्ये एह कहा जेतो मास सात उदकले विकरेमा सबल तथा तो संवञ्च रस्सदसउदकले वे करेमा सबले । इहां तो इमक ऊं जेम दिनामध्येत्र एपले लगाउद हितो सब लो दोषलाग़तथा वरस दिवसमा ह्रिदसन दक लेपलगाडे तो सब लो दोष लागे त हवें सब लो जो नही जोन दिक्रतरेधर्म होयतोश्री वीतरागेंजे को इच्प्रभिकिनदी उत्तरे ते हनें सब लो दोष के मक ह्यो। तथाजे धर्मकर्त्तव्य न तब जबकि जन्प्रनैवली करानें अनुमोदिई प्रनं नदी तो बहुब उतरवान कही। उतस्यापञ्चिन्प्रनुमोदिनह जेवी राधना हवी होते निंदे ग्रह तथा साइनें विहार करतां । किहेक वरसें तथा कि हे कमा सो तथा किह क दिवस्पषेत्र वसिषशतथादेस वीसेषां नादिना वितथानउतरूंतो तिकारसाकन दिउत्तानो पश्चातापन कराण प्रतिमा नो जण हार तो किकवर किहेकमासें कि हकदिवसों का रणनी सेषई। प्रतिमा एजी न सकश तोपच्याताप करणं श्मचिंतवे जेमादपोते पायजे महं प्रतिमान जाएगी। एसाइन दी एउ तराइमन चिंतबेजेमा हररं पोतपायजे मनदीनन तराणी जे को इस तिमाजप्रश्नदानो टष्टांत मांगेला तेस्त्रवीरुदिसब तएतलासी जेप्रतिमाना पूजनहारने प्रतिमानी पूजाच्प्रनुमोदना नातेवं द्रा ने साधुनें तो नदी नोकता ! निंदवानें शते व शतथाजे ईषा तन दाबते प्री बजे नदी का परीहारबई नाऊदबते नाक्कटिश्रा समवायंगमध्यो एकवीस समांगे
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