Book Title: Sthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Author(s): Sagarmal Jain, Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Vidyapith

Previous | Next

Page 576
________________ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ए लक्ष्मी का धनफिस तलाइकळे हियाए सुहाएनावान्प्रागामी साएशदना बिअधिकारकह्याब ढीतीही श्मक (पचाराने वारीचली क्षेतिहां इम ककीपर लोगस्सा तो जुनने जिम इंदाएवडा फेरशष्ट्नाब तिमस्तुरी च्यालने एकाला वे जी हां प्रती मा पूजीला ही पुविपाने वीतरागनें वांद्या तिहां-वाश्म कंकाएवडा राष्ट्रना फेर बोए मला वानें फेर सूरीयाल देवताश प्रतिमा आगलें नमो बुक कं तेजु ईषात अनें श्री वीतर गवांद्या तेजुयेषात तथा जिमप्रतिमानें पुद्विपञ्चाक बातिम दादाने मुलाने पण विपश्च्चा कांबोए बिऊ अधिकार एकता व तथाकेतला एकश्म कहेबइंजिसुधरम)सनामा तीर्थंकरनी दादा वशति होदेवताभ | थुनन से वे ते हसणी माढासम्म कत्वनेषातबैाती जुञ्जन जोसम्पत्वनेंषाते होय तोपुविपञ्चा की कम इयंचविसाइयंपाको कहे तथा श्री द्वाणां ग मध्येच जेवांग विचसा यत्रएप कातिलषी बश तिविहेवीव साएपन्नता तंज हाधिमिए विव साएशप्रधमी एवावसाए राधभी या धमेवीव साएशधर्मवीवसा एते साधनो धर्माधर्मते श्रावकनोशबाकि बावीसभकें अधर्मवावसायक ह्यो। तो जुउने देवता श्री वितरागदे विप्रधर्मावि वसाईकानें जी हांसुरी च्प्रान देवताप्रतिमा तथा वायाइत्यादि पूज वाच्यायो तिहारमक ऊंजे मियं विवसाश्यगिरिखा। तो जुठनेते धर्मविवसाय किनकी सामशिश्रावक धर्मा'तोतिहीन थी। प्रवा गांगमध्ये १० दसमेता धर्म नादसाद्दक स्वादस विदेश्भोपनं ते तंजाबमधमेशनगर भूम्मे रहधम्मेशपासमधमेक

Loading...

Page Navigation
1 ... 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616