Book Title: Sthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Author(s): Sagarmal Jain, Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 547
________________ ५२८ स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास आरंभाईण संकेति, अवियत्ता अकोविया ।। -श्री सूयगडांगे, प्रथमाध्ययने द्वितीयोद्देसे । जेवी रीते मृग पाश मां पड़े छे तेवी रीते केटलाक अनार्य मिथ्यादृष्टी श्रमण अशंकित जे धर्म ना अनुष्ठान, तेमां शंका करे छे अने हिंसादिक जे शंका ना स्थानो छे तेमां जरा पण शंका करता नथी। केटलाक मिथ्यादृष्टि अनार्य श्रमणो अज्ञानवादी शंकावादी छे तेओ न शंका करवा योग्य वस्तुओ मां शंका करे छे अने शंका करवा योग्य वातो (मां) अशंकित रहे छ। आ मुग्ध विवेकविकल तथा अपंडित दशविध जतिधर्मनी प्ररूपणा करवा मां शंका करे छे अने आरम्भ आदि पाप ना कारण मां शंका करता नथी । एयं खु नाणिणो सारं, जं न हिंसइ किंचणं । अहिंसा समयं चेव, एतावन्तं वियाणिया ।। -श्री सूयगडांग मध्ये प्रथमाध्ययने चतुर्थोद्देशके। पाणाइवाए वटुंता, मुसावाए असंजया, अदिन्नादाणे वटुंता, मेहूणे य परिग्गहे । एवमेगे उ पासत्था, पन्नवंति अणारिया, इत्थीवसं गया बाला, जिणसासण परंमुहा ।। - श्री सूयगडांगे तृतीयाध्ययने चतुर्थोद्देशके। एताणि सोच्चा णरगाणि धीरे, न हिंसए किंचण सव्वलोए । एगंतदिट्टी अपरिग्गहे उ, बुज्झेज्ज लोगस्स वसं न गच्छे । ___ -श्री सूयगडांगे निरयविभत्ती बीउद्देसए । दाणण सेढे अभयप्पयाणं, सव्वेसु वा अणवज्जं वयंति । तवेसु वा उत्तम बंभचेरं, लोगुत्तमे समणे नायपुत्ते ।। -श्री सूयगडांगे छकइ अध्ययने । पुढ़वी य आऊ अगणीय वाउ, तण रुक्ख बीआ य तसा य पाणा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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