Book Title: Sthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Author(s): Sagarmal Jain, Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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४३. त्रेतालीसमु बोल
स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास
हवइ त्रेतालीसमु बोल लिखीइ छइ । हवई श्री भगवतीमाहि श्रावक कहिया छई घणा, तेह श्रावकनई स्या स्या आचारनुं करिवउं छइ । तेह आलावओ लिखीइ छइ - "तेणं कालेणं तेणं समएणं तुंगिया णामं णयरी होत्था, वण्णओ, तीसे णं तुंगियाए नयरीए उत्तरपुरच्छिमे दिसिभागे पुफ्फवइए णामं चेइए होत्या, वण्णओ, तत्थ णं तुंगियाए णयरीए बहवे समणेवासया परिवसंति, अड्डा दित्ता, वित्यिण्णा, विपुलभवणसयणासणजाणवाहणाईण बहुधणबहुजातरूवरयता, आउगपउगसंपउत्ता, विच्छडिअविपुलभत्तपाणबहुदासीदासगोमहिसगवेलयप्पभूता, बहुजणस्स अपरिभूता, अभिगतजीवाजीवा, उवलद्धपुण्णपावा आसवसंवरनिज्जरकिरियाहिकरणबंधमोक्खकुसला, असहेज्जदेवासुरणागपुवण्ण जक्खरक्खसकिंनरकिंपुरिसगरुलगंधवमहोरगादिएहिं देवगणेहिं निग्गंथाओ पावयणाओ अणतिकमणिज्जा, णिग्गंथे पावयणे णिस्संकिया, णिक्कंखिया, णिव्वितिगिच्छा, लट्ठा, गहिअट्ठा, पुच्छितट्ठा, अभिगतट्ठा, विणिच्छिअट्ठा, अट्ठिमिंजपेमाणरागरत्ता, अयमाउसो, निग्गंथे पावयणे अट्ठे अयं परमट्ठे सेसे अणट्ठे, उसियफलिहा अवगंतेउरपरिघप्पवेसा, बहूहिं सीलव्वयगुणवेरमणपच्चक्खाणपोसहोववासेहिं चाउद्दसमुदिट्ठपुण्णिमासिणीसुपडिपुण्णं पोसहं सम्मं अणुपालेमाणा, समणे णिग्गंथे फासुएसणिज्जेणं, असणपाणखाइमसाइमेणं वत्यपडिग्गहकंबलपादपुंछणेणं, पीढ़फलगसिज्जासंथारएणं, ओसहभेसज्जेणं पड़िलाभेमाणा, अहापरिग्गहं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणा विहरंति ।" हवइ एह आलावामाहिं श्रावकनइं समकित कह्युं, व्रत कह्यां, पोसह लेता कह्या, साधुनई आहारादिक देता कह्या, तु इहांइ श्रावकनई श्री वीतरागईं इम कां न कहिउं जेह " प्रासाद कराव्या, अनइ प्रतिमा भरावी, अनइ प्रतिमा पूजी।” तु इम जाणज्यो जे वीतरागई गणधरनइ वचनई तु प्रासाद प्रतिमा नथी । जु ती तु ह श्रावकना आलावामाहिं कहुत । एह त्रेतालीसमु बोल ।
४४. च्युमालीसमु बोल
हवई च्युमालीसमु बोल लिखीइ छ । हवई श्रावकनई एहवी मनसा करवी कही छइ, ठाणांग मध्ये, ते आलावु लिखीइ छइ - "तिहिं ठाणेहि समणोवासए महानिज्जरे महापज्जवसाणे भवति। तं जहा- कया णं अप्पं वा बहुं वा परिग्गहं परिच्चइस्सामि ? कया णं अहं मुंडेभवित्ता आगाराओ अणगारिअं पव्वइस्सामि ? कया णं अहं अपच्छिममारणंतियसंलेहणा झूसणाजूसित्तभत्तपाणपडियाइक्खिते पाओवगए कालं अणवकंखमाणे विहरिस्सामि ? एवं समणसा सवसया सकायसा जागरमाणे समणोवासए महानिज्जरे महापज्जवसाणे भवति । " श्रावकनई श्री वीतरागई एहवी मनसा श्री ठाणांगमांहिं कहीं । पणि इम न कहउं-" प्रासाद प्रतिमा सेत्तुंज गिरिनार यात्रा करवी " - एहवी मनसा किहां सूत्रमाहिं करवी न कही । एह च्युमालीसमु बोल।
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